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समाज ने अपनी श्रद्धा स्वरूप प्रापको 'दानवीर' तथा 'श्रावक - शिरोमणी की उपाधियों से सम्मानित किया ।
प्रापके स्वर्गवास से सामाजिक इतिहास का एक युग समाप्त हो गया ।
समाज सेवी श्री रिषभदास रांका
भारत जैन महामण्डल के प्रारण, जैन समाज के सुप्रसिद्ध नेता, जैन जगत मासिक के स्वतंत्रता सेनानी, समाज सेवी श्री रिषभदास शंका गत 10 दिसम्बर को इस प्रसार संसार से महाप्रयाण कर गये ।
सम्पादक,
स्व० शंकाजी ने 75 वर्ष के सफल जीवन में राष्ट्र साहित्य एवं मानवता की उल्लेखनीय सेवाएं की हैं । आप कर्मयोगी थे । जीवन के अन्तिम क्षणों तक वे प्रसन्न भाव से निष्काम कर्म में संलग्न रहे । पिछले कई महिनों से प्राप ब्लेडर के कैंसर की बीमारी से ग्रस्त थे किन्तु समभाव से हंसते-हंसते न उसे केबल सहन ही कर रहें थे बल्कि अपने दृढ़ मनोबल से स्वाध्याय, लेखन प्रादि का बम्बई अस्पताल में भी प्रतिदिन प्राठ-दस घंटे कार्य करते रहें । पिछले दिनों उपचार हेतु जब वे अस्पताल में थे तब उनसे 'वल्लभ संदेश' मासिक द्वारा प्रकाश्य 'जैन एकता' बिशेषांक के लिए उनके विचार चाहे थे । उन्होंने अपने विचार अविलम्ब भेजे । मैं तो विश्वास भी नहीं कर सकता कि मृत्यु शैया पर लेटे रांकाजी अपने पत्रों के जवाब इतने जल्दी कैसे दे पाते थे ? यह उनका दृढ़ मनोबल ही था जिसके कारण वे रोग पर भी ग्रप्रमत्त भाव से विजयी हो चुके थे ।
आंध्र के तूफान पीड़ितों की सेवार्थ इस बीमारी में भी जाने के लिए प्राप ब्याकुल थे लेकिन चिकित्सकों ने आपको अनुमति नहीं दी
श्रापको गांधीजी, जमनालालजी बजाज, विनोबा भावे जैसे महानतम राष्ट्रीय विभूतियों का सम्पर्क मिला और अपने इन शीर्षस्थ नेताओं के निदेशन में राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय भाग लिय और अनेकों बार जेल भी गये ।
अनेकों अखिल भारतीय स्तर की संस्थाओं में आप सक्रिय पदाधिकारी रहे । गौसेवा और सर्वोदय के लिए आपने अपना जीवन लगा दिया । जैन समाज की एकता के लिए आपने भारत जैन महामण्डल के तत्वावधान में कार्य किया। भगवान महावीर 2500 वाँ निर्वाण महोत्सव समारोह में आपका योगदान स्मरणीय रहेगा ।
आपकी सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों से प्रभावित होकर ही आपका 1974 में
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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