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" मुख्य पृष्ठ पर जैन दर्शन के मावदर्शक और पंच कल्याणकों के सामूहिक भाव चित्रों की सूझ-बूझ एक अनोखी छटा है । साहित्यिक विविधा का समावेश स्मारिका में रखा गया है । हमारा एक सुझाव है कि रेखाओं द्वारा बोध वृत्तचित्रों को और समाहित किया जाये ।”
पं० प्रेमचन्द 'दिवाकर,' शास्त्री श्रीवर्णी स्नातक परिषद, सागर (म. प्र. )
" राजस्थान जैन सभा का यह स्तुत्य कार्य जन-मानस को एक आध्यात्मिक क्रांति की दिशा देता है | लेख मौलिक और पुनरावृत्ति के दोष से मुक्त, ज्ञान पिपासा के शामक तथा शीर्षस्थ विद्वानों के हैं ।
कविता के क्षेत्र में अवश्य कुछ लचीली बन पड़ी । मेरी विनय है कि अच्छे गीतकार से आप रचनायें आमन्त्रित करें और गद्य की भांति पद्य के स्वरूप को निखारें तो स्मारिका में वही सौन्दर्यता श्राजायेगी जैसे नवोढा के सोलह शृङ्गार से वह महक उठती है ।
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" समस्त रोचक साहित्य विधाओं से युक्त यह एक विशिष्टतम कृति बन गई है । स्मारिका it अपना साहित्यिक व भावनात्मक सहयोग देने हेतु सदैव तत्पर हूँ ।"
प्रो. निहाल जैन, नौगांव (म. प्र. )
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" स्मारिका आपने बहुत अच्छी निकाली । दिन प्रतिदिन आप उसका स्तर ऊंचा कर रहे हैं । रचनायें केवल तात्कालिक पढ़ने की ही नहीं हैं किन्तु स्थाई रूप से कुछ रचनायें उपयोगी तथा सन्दर्भ के रूप में काम आने योग्य होने से संग्रहणीय बन गई है । आपका हार्दिक अभिनन्दन । श्राशा है आप भविष्य में भी उसका स्तर इसी प्रकार बढ़ाकर सत्साहित्य में वृद्धि करेंगे ।"
कुमारी उषा किरण खमरिया, जबलपुर ।
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" स्मारिका 1977, पांच भागों में प्रत्यन्त सुन्दर छपाई, सफेद कागज एवं उच्च कोटि के विद्वानों के लेखों से शोभित आकर्षक आवरणयुक्त प्रत्यन्त उपयोगी, धार्मिक तथा ऐतिहासिक उत्तम सामग्री के भरपूर है । मैं आपको तथा राजस्थान जैन सभा को स्मारिका के प्रकाशन पर हार्दिक बधाईभेट करता हूँ ।"
( स्व० ) रिषभदास रांका, पूना सम्पादक - जैन जगत, बम्बई ।
दिगम्बरदास जैन, एडवोकेट सहारनपुर
महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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