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जानकारी प्रकाश में नहीं पायी । जबकि महावीर भूप भवन में जब गये, उच्छव भये अपार । जी तीर्थ के शोध संस्थान का तो यह पहला कवि 'राघव' साची कही, नैन देखि निरधार ॥ कत्तव्य था कि अज्ञात और अप्रकाशित सामग्री संवत 'अठार चुराधिका', सुक्ल पक्ष वैसाष । और जानकारी को 'बीर वाणी' प्रादि जैन पत्र- सुद्ध लगन प चांग के, भोम सु परथम भाप ।। पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशित किया जाता जात स्त्रावगी पाटणी, खिद् हदै बंस । रहता ।
मनालाल के कथन सू कीनों ब्रथ प्रसंस ।। जयपुर के राजाओं के जैन दीवानों के It is a description of the यात्रा Perअतिरिक्त कुछ उनके आश्रित जैन साहित्यकार भी formed by Sawai Ji Singh ]I] थे। जिनमें दौलतरामजी तो बहुत ही उल्लेखनीय रहे हैं और उनके सम्बन्ध में स्वतन्त्र ग्रन्थ भी
पोथी खाना में उपरोक्त सूची-नथ के पृष्ठ प्रकाशित हो चुका है। पर अन्य राज्याश्रित जैन
325 में राघव कवि सरावगी या जो विवरण साहित्यकारों सम्बन्धी जानकारी बहुत ही कम
छपा है. वह इस प्रकार है :-- प्रकाश में आयी है । अभी-अभी जयपुर के सुप्रसिद्ध राघव कवि सरावगी--- राजकीय पोथी-खाने की हस्त लिखित प्रतियों का एक सूची ग्रंथ श्री गोपालनारायणजी बोहरा (1) यात्रा वर्णन 4573 (1854 V.S) सम्पादित देखने को मिला, जिसमें जयपुर के (2) रसवल्ली वनकेली 3261 (4) महाराजा जयसिंह तृतीय की यात्रा सम्बन्धी एक .
इनमें से 'यात्रा प्रकाश' का वर्णन पृष्ठ 186 रचना का विवरण छपा है । इस ग्रंथ का नाम
में इस प्रकार छपा है- यात्रा प्रकाश by राघव 'यात्रा प्रकाश' है। इसकी रचना कवि राघव कवि सरावगी। पाटनी ने सं0 1884 के वैशाख सुदी मे की। . a description of the pilgrimage by मन्नालाल के कथन से यह ग्रंथ रचा गया है। सूची S. Jai Singh II, Composed in 1884 V. प्रकाशित विवरण में यात्रा प्रकाश के अन्तिम पाच 5. 4573. दोहे ही उबूत हैं । उनले यात्रा का पूरा विवरण ज्ञात नहीं होता। ग्रन्थ की पद्य संख्या या ग्रंथा
दोनों स्थानों में विवरणों से ऐसा लगता है
कि पृष्ट 325 में 'यात्रा वर्ग,न' ग्रन्थ का नाम ग्रंथ परिमाण भी ज्ञात नहीं हो सका । न पत्र संख्या और लेखन संवत ही विवरण में दिया गया
छपा है पर इसका वास्तविक न म 'य का प्रकाश' है। केवल एक नई उपलब्धि के रूप में प्राप्त
है। और रचनाकाल 1854 छपा है, वहां 1884
होना चाहिए । कवि की दूसरी रचना 'रसवल्लि विवरण यहां प्रकाशित किया जा रहा है ---
वन केली' का कोई विवरण नहीं दिया गया है - 4573. यात्रा प्रकाश by राघव कवि सरावगी अतः यह इसी नाम वाले किसी दूसरे कवि की
रचना भी हो सकती है । प्रति नं. 3261 में यह Closing :
रचना संख्या (चौथी) होने से यह छोटी सी ही घिी आये सामुहे, लिये खास पोसाख ।
लगती है। 'यात्रा प्रकाश में कवि के अांखों देखा गंगा को पूजन कियो, वेद शब्द मुख भाष ॥ वृतांत होने से यह तो एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक पतं सुटीबे प्राइक, रहे अमावस राति । रचना है अतः उसे शीघ्र ही प्रकाश में लानी सकल सुखी जयसिंह नृप , पुर प्रवेश परभात ॥ चाहिये। 2-108
महावीर जयन्ती स्मारिका 28
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