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उन्नति-अवनति के मध्य घूमते रहते हैं। दोनों को किन्तु अब धीरे-धीरे ज्योतिरंग कल्पवृक्षों का मिलाकर एक कल्प बनता है, जिसे आज की प्रकाश म्लान होता जा रहा है, इसलिए ये सूर्य भाषा में युग भी कहते हैं ।
और चन्द्र ज्योतिर्वन्त, चमकते हुए स्पष्ट दिखाई
पड़ने लगे हैं। इनसे तुम्हें कोई भय नहीं है।" उपक्त अवसर्पिणी के छः में से प्रारम्भ के
सुनकर. सब प्राश्वस्त हो गये । सूर्य और चन्द्र तीन कालों में यहां भोगभूमि थी। तब लोगों की
सौर जगत के दो ग्रह हैं, यह एक नया विज्ञान आवश्यकताए बिना श्रम किये ही, कल्पवृक्षों से
उन्हें ज्ञात हुआ। पूर्ण हो जाती थीं। ये कल्पवृक्ष दस प्रकार के होते थे-मद्यांग, तूर्या ग, विभूषणांग, स्रगंग, तारों को देख कर भय-त्रस्त जनता को, ज्योतिरंग, दीपांग, गृहांग, भोजनाङ्ग, पात्राङ्ग सन्मति नाम के कुलकर ने ज्योतिर्विज्ञान से और वस्त्राङ्ग । नामानुकूल ही अपना-अपना फल परिचित कराया। उन्होंने समझाते हुए कहा कि देने में वे सक्षम थे। शनैः शनैः उनकी संख्या ये तारागण, नक्षत्रों का समूह है। बाद में, उन्होंने और प्रभाव क्षीण होता गया तो धरा. दिन-रात का विभाग, सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण, वासियों के सम्मुख समस्याएं अभिनव रूप लेकर ग्रहों का एक राशि से दूसरी राशि पर जाना आदि
आने लगी-ऐसी समस्याए जो न कभी देखी बतलाया । क्षेमकर कुलकर ने सिंह, व्याघ्र आदि गई थीं, और न सुनी गई थीं। उन्हें सुलझाकर की गर्जना और उत्पात से बचने के लिये, उन्हें जिन्होंने जनता को सही समाधान दिया. वे जंगलों में छुड़वा दिया। क्षेमंधर ने उन हिंस्र, कुलकर संज्ञा से अभिहित किये गये। कुलकर व्याघ्र आदि भय कर पशुगों से रक्षा का उपाय युग के निर्माता थे-असाधारण प्रतिभा के धनी, बताते हुए लाठी आदि के प्रयोग से अवगत अप्रतिम और अनुपम । ऐसे 14 कुलकर हुए। कराया । सीमंकर कुलकर ने कल्पवृक्षों की न्यूनता उनके नाम थे--प्रतिश्रुति, सन्मति, क्षेमकर, होने के कारण, उपस्थित विवादों को 'सीमांकन' क्षेमंधर, सीमंकर, सीमंधर, विमलवाहन, चक्षुष्मान, के सिद्धान्त से शान्त किया। सीमंधर कुल कर के यशस्वान, अभिचन्द्र, चन्द्राभ, मरुद्देव, प्रसेनजित समय में, कल्पवृक्षों को लेकर विवाद और भी और नाभिराय ।' अनेक स्थलों पर नाभिराय के उग्र होने लगा, तब उन्होंने वृक्ष, झाड़ियों आदि पुत्र ऋषभदेव को भी उनके महान व्यक्तित्व के के द्वारा पुन: सीमांकन किया। विमलवाहन ने कारण कुलकर कहा गया है ।
हाथी, घोड़ा आदि पशुओं पर सवारी करने की
शिक्षा दी। __ जब तीसरे काल की समाप्ति में कुछ समय शेष था और कल्पवृक्षों का प्रभाव क्रमशः क्षीण पहले युगल पुत्र-पुत्री उत्पन्न होते थे। उन्हें होता जा रहा था, तब एक दिन उदय होते हुए 'युगलिया' अथवा 'जुगलिया' कहा जाता था। चन्द्र और अस्त होते हुए सूर्य को देखकर लोग प्राकृतिक नियम था कि उत्पन्न होते ही माताभयभीत हो उठे। उस समय प्रतिश्रुति नामक पिता दिवंगत हो जाते थे। कल्पवृक्षों के नीचे प्रथम कुलकर ने उनका समाधान किया- "ये अगूठा चूसते हुए वे स्वतः बड़े हो जाते थे । चन्द्र और सूर्य ग्रह हैं। पहले ज्योतिरङ्ग जाति के शायद कल्पवृक्षों की सुगन्धित वायु उनके स्वतः कल्पवृक्षों के प्रकाश के कारण ये धूमिल से मालूम पोषरण का मुख्य कारण बनती होगी। अब समय पड़ते थे । अतः इनकी ओर ध्यान नहीं जाता था, बदला और माता-पिता पुत्र का मुह देखने के
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महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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