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चाहूंगा अपना सपना
.पं० उदयचन्द्र शास्त्री
जंवरीबाग, नसिया, इन्दौर अपने प्रांगन में आज तुझे देखा था स्मृति पटल पर बनी हुई रेखा मैं निथ पड़ा हूं सड़कों पर तू निर्ग्रन्थ मदिर, मस्जिद, गिरजानों में, मौज उड़ाता। घर में रहकर दिगम्बर भी कहलाता मैं अम्बर के साये में सुख से दिन-रात बिताता मैं भक्तों के बीच खड़ा पैसे हो पाता तेरे भक्त, तेरे दरवाजे पर, अंगुष्ठ दिखाते, कुछ नहीं मिला तुझसे गुस्से से आँख दिखाते, पौ फटते ही हम सबको एकत्रित करवाते सोचोगे मेरे जीवन को प्रांसू झरनों से निकलेंगे माँ की ममता का स्नेह भरा चाहूंगा अपना सपना होकर जिस पथ से निसार उस पथ को ही मैं खोजूगा जिस रस को पी तू बना अमर उस रस को ही मैं पीऊगा।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 78
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