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इस प्रकार जैन दर्शन की वस्तुतत्व की अनन्त धर्मात्मकता तथा प्रमाण, नय और दुर्नय की धारणाओं के आधार पर स्याद्वाद सिद्धांत त्रिमू ल्यात्मक तर्क शास्त्र (Three Valued Logic) या बहुमूल्यात्मक शास्त्र का समर्थक माना जा सकता है किन्तु जहां तक सप्तभंगी का प्रश्न है उसे त्रिमूल्यात्मक नही कहा जा सकता क्योंकि उसमें नास्ति नामक भंग एवं अवक्तव्य नाम भंग क्रमशः असत्य एवं श्रनियतता ( Flase & Indeterm - inate) के सूचक नहीं है । सप्तभंगी का प्रत्येक भंग त्रिमूल्यात्मक तर्कशास्त्र की त्रयी- 1. निश्चितता 2. सम्भाव्यता 3. असम्भाव्यता ↓
↓
↓
सत्य सूल्य
श्रांशिक सत्यमूल्य
1.
2.
3.
जैन दर्शन को नयी
सत्य मूल्य सूचक है यद्यपि जैन विचारकों ने प्रमाण सप्तभंगी और नय सप्तभंगी के रूप में सप्तभंग के जो दो रूप माने हैं, उसके आधार पर यहां कहा जा सकता है कि प्रमाण सप्तभंगी के सभी भंग सुनिश्चत सत्यता और नय सप्तभंगी के सभी भंग सम्भावित या प्रांशिक सत्यता का प्रतिपादन करते हैं । श्रसत्य का सूचक तो केवल दुर्नय ही है । अतः सप्तभंगी त्रिमूल्यात्मक नहीं है । संक्षेप में स्याद्वाद सिद्धांत की तुलना त्रिमूल्या मक तर्कशास्त्र से निम्न रूप में की जा सकती है ।
1-52
1. प्रमाण
↓
सत्य मूल्य
↓
श्रांशिक सत्य
मूल्य
श्रतः स्याद्वाद त्रिमूल्यात्मक है किन्तु सप्तभंगी द्विमूल्यात्मक है उसमें असत्य मूल्य नहीं है उसमें भी प्रभाग सप्तभंगी निश्चित सत्यता की सूचक है और नय सप्तभंगी प्रांशिक सत्यता की
षण्णवणिज्वा भावा प्रांतभागो दु प्रणभिलप्पानं । वणिज्जापुर प्रांतभागो सुदनिवड़ो !
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2.
प्राच्य विद्या सम्मेलन कर्नाटक विश्वविद्यालय धारवाड़ में सन् 1976 में पठित
सध्ये सरा नियट्टति, तक्का जत्थन विज्जइ मई तत्त न गहिया... "उपमा न विज्जई अपयस्स पयं नत्थि ।
नय
3.
श्राचारांग 1-5-6-171
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असत्य मूल्य
दुर्नय
↓
असत्य मूल्य
गोमटसार, जीव. 334
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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