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जितने भी प्रास्तिक दर्शन हैं वे मानव का लक्ष्य निर्वाण प्राप्ति स्वीकार करते हैं। मानव के चार पुरुषार्थों में वह अन्तिम है। पुरुषार्थ धर्म से प्रारंभ होते हैं। निर्वाण प्राप्ति के लिए धर्म की साधना अनिवार्य है। जैन और बौद्ध दर्शन इस दृष्टि से समान हैं कि दोनों ही ईश्वर को कर्ता धर्ता नहीं मानते । फलतः दोनों को ही मान्यता है कि मानव अपने प्रयत्नों, अपनी साधना से निर्वाण की प्राप्ति कर सकता है। दोनों दर्शनों की वह साधनापद्धति क्या है ? इसकी जानकारी संक्षेप में विद्वान् लेखक को इन पंक्तियों से प्राप्त कीजिए।
प्र० सम्पादक
जैन-बौद्ध साधना पद्धति :
• श्री उदयचन्द्र 'प्रभाकर' शास्त्री, इन्दौर
भारतीय दर्शन की विचारधारा आध्यात्मिकता ज्ञानरूप है। जीव एक ही तत्व है। जो ज्ञान है से मोतप्रोत है, जिसके पथ का अनुसरण कर वही जीव है, जो जीव है, वही ज्ञान है। जीव से मानव ने अपने कालुष्य को धोकर निर्वाण या मोक्ष पृथक् ज्ञान नहीं है। ज्ञान जीव का विशेषण नहीं, या कंवल्य को प्राप्त कर लिया। कैवल्य या मोक्ष अपितु स्वरूप है। की दशा में मानव को प्रात्म-स्वरूप का बोध हो
आचार मीमांसा :-भारतीय दर्शन का मूल जाता है और प्रात्मा ही परमात्मा का रूप धारण
__ लक्ष्य है मुक्ति या मोक्ष । सभी ने कर्मबंधनों से कर लेता है। उसका जन्म-जन्मातर का भव-भ्रमण
मुक्ति या दुःख से विमुक्ति होने को मोक्ष कहा है। मिट जाता है। यहां इस बात का निर्देश करना है
जैन दर्शन में रत्नत्रय -सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान कि जैन-बौद्ध धर्म ने कौन से साधन मुक्ति के लिए मोर सम्यक चारित्र की योग्यता प्राप्त होने पर प्रयोग किये, जिससे संसार चक्र की अवस्था समाप्त
मोक्ष प्राप्त हो जाता है। अत: मोक्ष के साधन हैं हो जाय । दोनों ही दर्शन अपने-अपने क्षेत्र में प्रसिद्ध
कर्मों की निर्जरा के लिए 1. पञ्चमहाव्रत, हैं। जहां जैनों ने रत्नत्रय को प्रधान कहा, वहां
2. समिति, 3. गुप्ति, 4. धर्म, 5. अनुप्रेक्षा, बौद्धों ने निर्वाण प्राप्ति के लिए अष्टांगमार्ग का
6. परिषहजय और 7. चारित्र । ये उपाय हैं। निर्देश किया। दोनों ने अहिंसा को महत्व दिया
या महावीर की आधार मीमांसा इसी आधार पर और ब्रह्मचयं पर विशेष जोर दिया है।
टिकी हुई है। हिंसादि कार्यों को दोनों ने हेय माना। कर्म- आधुनिक संदर्भ में अहिंसा कहां तक सफल वाद और पुनर्जन्म का सिद्धान्त भी स्वीकार किया। है, यह तो इसी बात से प्रत्यक्ष हो जाता है कि परन्तु कुछ मान्यताओं को जो जनों ने स्वीकार सभी प्राणी अभय चाहते हैं, चाहे चोरी करने की उसे बौद्धों ने नहीं। जैनदर्शन की प्राधारभूत वाला हो या अन्य अवैधानिक कार्य को करने शिला प्रात्म-तत्व या जीवतत्व है। यह जीव वाला। जहां हिंसक प्रवृत्ति मानव को पतन की
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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