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यो विश्वं वेदवेद्य जननजलनिधे
भंगिनः पारदृश्वा ।
पौर्वापर्याविरुद्ध वचनमनुपम
निष्कलंक यदीयम् ॥
REASOSAAaaaaaaaa OSASSASOAAcAAOSASUHAAAAAAAAAA
तं वन्दे साधुवंद्य निखिलगुणनिधि
20HWASHAAAAAAHHHHAHACHOHSASSIOHAMADHAON
ध्वस्तदोषद्विषन्तम् ।
बुद्ध
वा वर्धमानं शतदलनिलयं
केशवं वा शिवं वा॥
-भट्टाकलङ्कदेव
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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