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जैन धर्म ने भारतीय कला और संस्कृति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिवा है । शायद ही कोई ऐसी कला छूटी हो जिस पर जैनों का प्रभाव न पड़ा हो । खजुराहो, पाबू, राणकपुर, उड़ीसा का हाथी गुफा प्रादि हमारे इस कथनं की पुष्टि में प्रस्तुत किये जा सकते है । संस्कृति के क्षेत्र में जैनों को अहिंसा परि भाषा अपना विशिष्ट स्थान रखती है । स्याद्वाद और अनेकान्त जैसे सिद्धान्तों पर उनका एकाधिकार है । कर्म सिद्धान्त भी उनका जैसा कहीं नहीं है।
प्र० सम्पादक
जैन धर्म का भारतीय कला और संस्कृति को योगदान
* श्री सुदर्शन जैन, उज्जैन
धर्म संस्कृति का पोषक और वाहक है । प्रत्येक दिया है क्योंकि वे प्रारम्भ से ही इसे धर्म प्रचार धर्म का मानव सस्कृति और सभ्यता के प्रभ्युदय का महत्त्वपूर्ण वाहक समझेते पाये है । गुफाओं, एवं विकास में अभिन्न योगदान रहा है । जैन धर्म स्तूपों, मन्दिरों, मूर्तियों, चित्रों आदि ललित ने देश की संस्कृति और सभ्यता के प्रत्येक अंग को कलाओं को प्रोत्साहन दे, देश के विभिन्न भागों को पल्लवित एवं प्रभावित किया है । इस धर्म ने देश सौन्दर्य से सजाया है और साथ ही साथ भारतीय की कला एवं संस्कृति को नवीन रूप एवं नयी कला को नया रूप दिया है । उड़ीसा में हाथी गुफा दिशा प्रदान की है । जैन धर्म की विभिन्न और में खारवेल का शिलालेख और मूर्तियां, गया की विपूल उपलब्धियों को जाने समझे बिना भारतीय प्राचीन गुफाए, खजुराहो की अपार कला सम्पदा, संस्कृति का ज्ञान परिपूर्ण नहीं कहा जा सकता। बाहुबलि की जैन मूर्ति, चित्तौड़ का विजय स्तम्भ,
__ आबू के जैन मन्दिर आदि जैन कला के भारतीय देश समाज व धर्म के इतिहास को पूर्ण रूप से ।
कला को अद्वितीय योगदान हैं। समझने के लिये, उनके प्राश्रय में विकसित कलाओं के इतिहास का ज्ञान अति आवश्यक है कला का अहिंसा का सिद्धान्त, जैन धर्म का देश की उद्देश्य जीवन का उत्कर्ष है और सच्चे अर्थों में संस्कृति को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान है । जैन कला समाज का दर्पण है । जैन कला, धर्म के धर्म में अहिंसा पर सबसे अधिक बल दिया गया प्रांचल में पली है और सदैव धार्मिक भावना से है। इस सिद्धान्त ने न केवल भारतीय संस्कृति को प्रभावित रही है । जैन कला का उद्देश्य जन प्रभावित किया है अपितु पूर्ण मानव संसार इसे कल्याण और जन भावना का परिष्कार एवं उत्क- आधुनिक युग की समस्याओं की एकमात्र कुजी र्षण कर लोक का प्राध्यात्मिक एवं नैतिक स्तर समझता है । भगवान् महावीर, जैन धर्म के 24वें ऊपर उठाना रहा है । जैन शासकों एवं धर्माव- तीर्थङ्कर, जिनका 2500वां निर्वाण महोत्सव पूरे लम्धियों ने कला के उत्थान में एक विशेष योगदान देश में जोर शोर से मनाया जा चुका है, ने "अहिंसा
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महावीर जयन्तीस्मारिका 77
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