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5. 1490 ई०--वेदनगर में चित्रित 'कल्प
सूत्र' 6. 1492 ई०--पाटन में चित्रित 'उत्तरा
ध्ययन-सूत्र' 7. 1493 ई०--पाटन में लिपिबद्ध 'माधव
नल-कायकन्दल कथा' १. 1498 ई०--पाटन में लिपिबद्ध चन्द्र
प्रभ चरित्र' 9. 1501 ई०- पाटन में चित्रित जामनगर
कल्पसूत्र' और 'कालका कथा' 10. 1521 ई०--पाटन में चित्रित भावनगर
कल्पसूत्र' 11. 1583 ई०--मटार में अनूदित तथा
गोविंद द्वारा चित्रित 'संग्रहणीय-सूत्र' 12. 1587 ई.---कम्बे में अनूदित 'संग्रहणीय
1. (1636 ई०:--प्रिंस प्राफ वेल्स म्यूजियम __ में संग्रहीत-'सग्रहणीय सूत्र' । 2. (1644 ई०)--नूतनपुर में चित्रित
'कुमारसम्भव' । 3. (1650 ई०)--'कृष्णवेली' । 4. (1650 ई०)--'नपहरनगढ़' । 5. (1655 ई०)--'चन्दरास' । 6 (1659 ई०)--सूरत में चित्रित 'चन्द
रास'। 7. (1669 ई०)--प्रशनिकोटा में चित्रित
'मेघदूत' । 8. (1685 ई० के लगभग)--मुनिश्री पुण्य. विजयजी के संग्रहालय में स्थित 'संग्रह
णीय सूत्र' (तिथि अज्ञात) । 9. (1667 ई०)-'हरिबाला चौपाई' । 10 (लगभग 17वीं शती)--मुनिश्री पुण्य
विजयजी के संग्रहालय में स्थित अपूर्ण 'नलदमयन्तीरास', जिसका रचनाकाल
प्रज्ञात है। 11. (17वीं शती का उत्तरार्द्ध)--'प्रार्द्र कुमार
रास' । 12. (1719 ई.)--प्रिंस प्राफ वेल्स म्यू
जियम में संग्रहीत ‘देवी माहात्म्य । 13. (1812 ई०)--पूना में अनूदित श्री ___'चन्दराजानो रास'। 14. (1962 ई०)--जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-प्रम
रत्नमंजूषा ।
13. 1600 ई० -उत्तराध्ययन सूत्र'49
(मा) उत्तर काल--(1600 ई० के पश्चात् का समय)--यह वह समय था, जबकि जैन चित्रकला ने मुगल तथा राजपूत चित्रकला का प्राश्रय लेकर निजस्व विस्मृत कर दिया अर्थात् इस समय के जैन ग्रंथों के चित्रों का निर्माण मुगल एवं राजपूत शैली में हुआ।
वाचस्पति गैरोला के अनुसार 'समयसुदर' नामक एक जैन मुनि ने 17वीं शती में 'अर्थ रत्ना. बली' के नाम से एक अद्भुत ग्रंथ की रचना की थी, जिसे उन्होंने अकबर को भेंट किया था। इस ग्रंथ में अकबरयुगीन भित्तिचित्रों तथा अन्य प्रकार के चित्रों का भी वर्णन किया गया है 150 1600 ई० के पश्चात् की कुछ निम्न पाण्डु.
उल्लेख यू० पी० शाह ने सम्प्रति खोज के प्राधार पर किया है, जो इस प्रकार है--
इस समय की कुछ अन्य पाण्डुलिपियों का वर्णन डा० कुमारस्वामी ने निम्न रूप दिया है
1. ब्रिटिश संग्रहालय में स्थित, 16वीं, 17वीं
शती में चित्रित 'उत्तराध्ययन' ।
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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