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कला के किसी भी क्षेत्र में जैन जैनेतरों से पीछे नहीं रहे। चित्रकला भी उसका अपवाद नहीं है । प्रन्थ भण्डारों में ऐसे हजारों जैन ग्रन्थ प्राप्त होते हैं जो सचित्र हैं । चित्रकला के विकास क्रम को समझने में ये पाण्डुलिपियां बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं। प्रस्तुत निबन्ध में विदुषी लेखिका ने समयवार ऐसी पाण्ड. लिपियों का परिचय देते हुए बताया है कि जैनों के अन्य भण्डारों के प्रबन्धकों को असहयोग की भावना के कारण इस सम्बन्धी शोध के क्षेत्र में न कुछ के बराबर कार्य हुआ है।
प्र० सम्पादक
चित्रित जैन पाण्डुलिपियों का क्रमिक विकास
* कु. कमला जैन, जयपुर
वाघ, अजन्ता, एलोरा आदि से प्रस्थापित बौद्ध धर्म सम्बन्धी देवी-देवतानों का चित्रगण भित्ति चित्र परम्परा समाप्तप्रायः होने के पश्चात् मिलता है तथा जैन धर्म ग्रन्थों में भी प्रमुखतः लगभग दसवी ई० शताब्दी से भारतीय चित्रकला तीर्थङ्कगें की जीवन सम्बन्धित घटनाओं का अंकन में ऐसा मोड़ पाया कि चित्रों का निर्माण भित्तियों दृष्टिगोचर होता है। के स्थान पर ताड़ पत्रों पर होने लगा : भित्ति
सचित्र जन पाण्डुलिपियों के रचनाकाल को चित्रों की अपेक्षा यद्यपि यह कार्य सहज था तथापि लालित्य व स्थायित्व की दृष्टि से भित्ति चित्रों की
डा० मोतीचन्द्र ने निम्न भागों में विभक्त किया हैतुलना नहीं कर सका। हाँ, धर्म ग्रन्थों में समाविष्ट
प्रथम . ताड़पत्र का समय किये जाने के कारण ताड़ चित्र सरस व आकर्षक
(I110-1400 ई०) बने रहे । ताडपत्रों पर प्रारम्भिक सचित्र पाण्डु
द्वितीय-कागज का समय लिपियां पूर्वी भारत में पाल राजाओं के संरक्षण
(1400 ई० के पश्चात् में रची गई । ये ग्रन्थ मुख्यतः बौद्ध धर्म की महा
(प्र) प्रारम्भिक काल - यान शाखा से सम्बन्धित हैं।
(1400-1600 ई.)
(प्रा) उत्तर कालपश्चिमी भारत से प्राप्त चित्रित पाण्डुलिपियां
(1600 ई० के पश्चात् का समय) मुख्यतः जैनधर्म से सम्बन्धित हैं । इनमें प्रारंभिक ग्रन्थ ताड़पत्र पर लिखे हुए हैं। प्रतः सम्भव है डा० मोतीचन्द्र ने 1400 ई० को ताड़पत्र कि जैन ग्रन्थों को चित्रित करने का विचार जैन पोर कागज के समय की विभाजन रेखा माना है, धर्मशासकों द्वारा बंगाल में पाल राजाओं के संर. किन्तु एच० गोयेट्ज के मतानुसार 4वीं शती का क्षण में चित्रित बौद्धधर्मी ताडपत्रीय पाण्डुलिपियों उत्तराद्धं और 15वीं शती के प्रारम्भिक दस वर्ष से लिया गया हो। क्योंकि बौद्ध धर्म ग्रन्थों में का समय ताड़पत्रीय पाण्डुलिपियों के अन्त एवं
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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