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॥ मंगल-गीत ॥
* डॉ. बडकुल, डी. एल. जैन 'धवल', बरेली प्रायो-पायो रे, जनम त्योहार, त्रयोदशि मधु-मासा। ऐ-रे, धवल-पक्ष भिन्सार, ज्ञान-रवि प्रकासा ॥ टेक ॥ भयो-भयो रे, वीर-अवतार, गोद त्रिसला साजी। सुन-सुन रे, ध्वनि शहनाई, सिद्धारथ गृह बाजी ।। जुड़ि-गयो रे, देव परिवार, कुंडलपुर में खासा । प्रायो० ।।
भयो-भयो रे, अचम्भो एक, चकित थे सब प्रानी। भयो गद्-गद् सकल जहान, शत्रुता-विसरानी ।। मिली-बैठे, बकरी-शेर, प्रीति का था वासा । प्रायो० ॥ मिट गया तिमिर मिथ्यात, हृदय राजीव खिला । भये निर्भय जग के प्राणि, अभय, वर-दान मिला। भये काम-क्रोध, सब नाश, रही नहीं अभिलाषा । प्रायो० ।। प्रभु ! सुनलो प्राज पुकार, समय वह फिर पाये। हो क्षमा दया सर्वत्र, अहिंसा मन भावे ॥ दस दिशा हो, 'धवल' धर्म का हो वासा । आयो० ।।
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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