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श्रमण संस्कृति को प्राचीनता को पुष्ट प्रमाणों से प्रमाणित करते विदुषी लेखिका ने बताया है कि मोहनजोदडो और हडप्पा की खुदाई से प्राप्त अवशेषों से यह भली प्रकार प्रमाणित है कि पार्यों के कथित भारत प्रागमन से पूर्व भी यहां एक समृद्ध सभ्य और सुसंस्कृत सभ्यता थी। लोग प्रात्मविद्या के प्रकाण्ड विद्वान् थे । ये लोग भमरण संस्कृति से सम्बद्ध थे इस की प्रबलतम संभावना है।
प्र० सम्पादक
श्रमण संस्कृति को प्राचीनता
श्रीमती चन्द्रकला जैन, जयपुर
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के ध्वंसावशेषों ने यह तो सर्वसम्मत रूप से प्रमाणित कर दिया है पुरातत्व के क्षेत्र में एक नई हलचल पैदा कर दी कि किसी युग में उत्तरी क्षेत्रों से बहुत बड़ी संख्या है। जहां आज तक सभी प्रकार की प्राचीन सांस्कृ- में आर्य लोग भारतवर्ष में पाये। उन लोगों की तिक धारणाएं प्रार्यों के परिकर में बन्धी थी, वहां एक व्यवस्थित सभ्यता थी। यहां के आदिवासी पर खुदाई से प्राप्त उन अवशेषों ने यह प्रमाणित लोगों को उन्होंने सामाजिक, राजनैतिक, प्राथिक कर दिया है कि पार्यों के कथित भारत प्रागमन प्रादि सभी क्षेत्रों में परास्त किया और उत्तर से के पूर्व यहां एक समृद्ध संस्कृति और सभ्यता थी। दक्षिण तक समग्र देश में अपनी संस्कृति का प्रभाव उस संस्कृति के मानने वाले मानव सुसभ्य, सुसंस्कृत बढाया। यह वही सभ्यता है जिसे लोग वैदिक और कलाविद् ही नहीं थे अपितु प्रात्मविद्या के सभ्यता के नाम से अभिहित करते हैं। भी प्रकाण्ड पण्डित थे। पुरातत्व विदों के अनुसार
प्राग मार्य सभ्यता-इस गवेषणा के साथजो अवशेष मिले हैं, उनका सीधा सम्बन्ध श्रमण
साथ अब तक यह तथ्य भी जुड़ा हुआ था कि संस्कृति से है। आज यह सिद्ध हो चुका है कि
प्रार्यों के प्रागमन से पूर्व इस भारतवर्ष में कोई पार्यों के प्रागमन के पूर्व ही श्रमण संस्कृति भारत
समुन्नत सभ्यता या संस्कृति नहीं थी। जैन और वर्ष में अत्यन्त विकसित अवस्था में थी। पुरातत्व
बौद्ध परम्पराएं भी इसी संस्कृति की उत्क्रान्तियांसामग्री से ही नहीं अपितु ऋग्वेद प्रादि वैदिक
मात्र हैं। इन दिनों में जिस प्रकार इतिहास करवट साहित्य से भी इस सम्बन्ध में पर्याप्त सामग्री
ले रहा है उससे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि मिलती है।
प्रार्यों के प्रागमन से पूर्व यहां एक समुन्नत संस्कृति प्रार्यों का प्रागमन-मोक्समूलर, मैकडानल और सभ्यता विद्यमान थी। वह संस्कृति अहिंसा, तथा अन्य पाश्चात्य विद्वानों की गवेषणामों ने सत्य और त्याग पर माधारित थी। यहां तक कि
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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