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एक सत्य का द्वार
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- श्री भवानीशंकर, जबलपुर
एक दृष्टि है जिसमें दृश्य सभी चलते हैं. एक हृदय है जिसमें सुख-दुख सब पलते हैं. एक प्राइना है जिसमें हर बिम्ब उभरता. एक बिन्दु है जिसमें सिन्धु सभी ढलते हैं.
एक लहर है जिसमें दुनिया लहराई है. एक सतह है जिसमें असीम गहराई है. एक बूंद है जो हर प्यास बुझा देती है. एक किरण है जो सारे तम पर छाई है.
एक सत्य का द्वार युगों से खुला हुआ है. एक प्रारण सबकी साँसों में घुला हुआ है. लेकिन हम सब भूल गए हैं उस दीपक को जो कि हमारे ही कमरे में जला हुआ है.
हम अतृप्तियों को जीते हैं जीवन-जल में. हम डूबे रहते हैं आने वाले कल में. कागज के फूलों का है विश्वास हमारा. हम सुख की सुगन्ध अनुभव करते हैं छल में.
मृगमरीचिकाओं में शान्ति नहीं मिलती है. विश्वासों की उम्र यहां तिल-तिल जलती हैअंधकार के पार द्वार खोलो प्रकाश का सुबह जहां विस्तार दिवस का ले चलती है।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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