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MOM RISASISARUSSA
PODAWABANGO DASANDO DOSADASOCCORON
यह मानव जीवन
* कु• उषाकिरण, जबलपुर यह मानव जीवन है कितना दुर्लभ कितने हैं इसके प्रायाम अस्तित्वों का ही संघर्ष धरा पर दलनी यूं ही जीवन की शाम हर परिवेशों पर धूल जमी है सात्विकता तो कूल पड़ी है यह मन घृणा-द्वेष के वातायन में नित-प्रति रमता जाता है मृगतृष्णा के भ्रमित नीर में खोजता फिरता पिपासा का निदान कशोर्य वयसंधि की गरिमा में पुरुषार्थ कहां त्याग क्षमा करुणा का धाम बहुरंगी चुनरी के अवगुण्ठन में राष्ट्र की अवनति का धाम सब अपनी ढपली ले राग विहाग करे बेनाम नारी जो लज्जावसना थी सुखोपभोगों की दौड़ में विजयी होकर कैसी हो गई छलना निज का ममत्व विसराकर करुणा रत है देने में रूप सौन्दर्य का दान यूही प्रादर्शों को होड में बीता है अबतक जीवन लघुतम
यह मानव जीवन KUMHOWYWANYCOSMS SMS MHE. MY SMS 2-28
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
RDI secolo
CONSSANDHA SWAHHAHAHAHAHAHAHHAHHAHA.
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