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हरा भरा, सजीव धौर इन गुणों द्वारा चेतना प्रदान करने वाली है ।
इस प्रकार वैदिक साहित्य में इसे भौतिक समृद्धि दाता, कल्याणकारी, सौंदर्य, विजय, प्राभा, दैहिक सौंदर्य की अभिवृद्धि कर्त्ता, बीमारियों से रक्षा करने वाला प्राभूषण कहा है। अथर्ववेद में भी श्री देवी के समृद्धिदाता तथा पशु संरक्षक रूप की चर्चा है। जहां इसकी प्रार्थना में गायों, खाद्य सामग्री, मन्त्र, समृद्धि, स्वर्ण दासी, स्वास्थ्य, सुख का निवेदन किया गया है ।
रामायण के सुन्दर काण्ड ( 30 / 2 ) में हनुमान सीता को देखकर उन्हें पहले नन्दन वन का देवता समझ बैठते हैं (प्रवेक्षमाणस्तां देवीं देवतामिव नन्दने) । इसमें भी मानव शरीर के सौन्दर्यप्रतीक के रूप में श्री देवी का चित्रण मिलता है ।
'कुवलयमालाकहा' में राजा दृढवर्मा की कुल परम्परा से चली आई भगवती राजश्री कुल देवता का सन्दर्भ है । राजा कुलदेवी श्री की पूजा करके एक पुत्र पाने का वर पाते हैं। अर्थात् कुवलयमाला में हम सिरिदेवी या श्री देवी को संतान प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजित होता पाते हैं । यहां इसे रायसिरि' और सिरी दोनों से सम्बोधित किया गया है। धनपाल की तिलक मंजरी में भी राजा द्वारा अपने (निजी उद्यान) प्रमदवन में श्री देवतागृह और उसमें स्थापित श्री की काष्ठप्रतिमा का उल्लेख है । यहां पुत्र प्राप्ति के निमित्त श्री श्रायतन में पूजा करने की, तथा श्री देवी द्वारा पुत्र प्रदान करने की चर्चा है। विशिष्ट बात यह है कि यहां भी राजश्री और श्री दोनों रूप में सन्दर्भ हैं। प्रतः ऐसा प्रतीत होता है कि जैन साहित्य में 'श्री' के अनेक रूप विकसित हुए। एक रूप राज्यश्री का था जो न केवल राज्य की समृद्धि का सूचक था अपितु राज परिवार की वृद्धि से सम्बद्ध था । श्री देवी को प्रभिलाषित या इच्छित की पूर्ति प्रर्थात् श्री देवी प्रजनन की देवी की रूप में लोक में बराबर पूजित रही। दूसरी बात है, श्रीगृह या श्रायतन के निर्माण की श्रीदेवी के मन्दिर, श्रायतन को हम उद्यान में पाते हैं जो उसके प्रजनन-रूप की याद दिलाते हैं । जब उसका सम्बंध प्रार्य पूर्व से ही लोक में हरियाली, उत्पादन की देवी के रूप में रहा । तीर्थंकर माता के स्वप्नों एव अष्टमंगल द्रव्यों में से एक श्री देवी की परम्परा जैन साहित्य में
कुषाण कालीन प्राकृत ग्रन्थ 'अंगविज्जा' में
करने वाली देवी कहा है । अन्यत्र 'सिरिधर' या श्रीगृह का उल्लेख भी है । 3 मिलिन्द्र - प्रश्न' में ( प्र० 2 / 1 ) श्रीदेवता के धार्मिक सम्प्रदाय एवं अनुयायियों की चर्चा है । ये अनुयायी 'भक्त' कहलाते थे । बुद्धवंस में ( II, 2 / 2 ) नन्द श्राराम में निर्मित 'सिरिधर' की चर्चा है ।
प्रक्षुण्ण रूप से मिलती है ।
उद्यान में श्री देवी का प्रायतन बनाने और
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
दूसरी ओर श्री धौर लक्ष्मी को विष्णु की पत्नी कहा गया है। महाभारत ( विराट पर्व ) में देवियों के परिगणन में विष्णु के साथ श्री, दामोदर के साथ लक्ष्मी, इन्द्र के साथ शचि का उल्लेख आया है । समन्वय की धारा शान्तिपर्व में भी इष्टिगोचर होती है, जहां श्रीभूति श्रौर लक्ष्मी को एक कहा गया हैं । (भूतिलक्ष्मीति मामाहुः श्री रित्सेवचवासवः) ।
प्राकृत साहित्य में श्री देवी
'वसुदेव हिण्डी' में श्रीगृह का उल्लेख है जो रेवतक पर्वत के पास स्थित नन्दनवन में बना था ।
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यहां पीठीका पर श्री देवी की प्रतिमा स्थापित थी । सत्यभामा ने श्राकर प्रार्थना की. इच्छा पूरी होने पर समुचित पूजा-अर्चना करेगी । वसुदेव हिण्डी में श्री को मानवीय सौंदर्य के प्रतीक रूप में चित्रित किया गया है तथा सौन्दर्य के मापदण्ड के रूप में उसकी चर्चा है । श्रीवत्स युक्त प्रद्य ुम्न तथा धम्मिल प्रादि का वर्णन मिलता है। 4
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