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स्वामिन् एषा सीता रावणे मोहिता रावणांही भूमो लिखित्वा पुष्पादिभिः पूजयति ॥ जैन रावण-चित्र-कथा का भारतीय रामायणों पर प्रभाव :
जैन राम-साहित्य में प्रायी, सीता द्वारा रावण के चित्र के निर्माण की घटना का भारतीय रामायणों पर व्यापक प्रभाव पड़ता दिखलायी देता है।
बंगाल में कृत्ति वास प्रोझा द्वारा लिखित रामकथा 'कृत्तिवास रामायण' या 'श्रीराम पांचाली' (पन्द्रहवीं शताब्दी का अन्त) में सखियों से प्रेरित होकर सीता रावण का चित्र खींचती है ।
सिक्खों के दशमेश गुरु गोविन्दसिंह ने 'रामअवतार कथा' या 'गोविन्द रामायण' (सन् 1698) में रावण-चित्र के कारण राम के सीता पर संदेह होने का वृत्तांत मिलता है ।
संस्कृत की 'प्रानन्द रामायण' (पन्द्रहवीं शताब्दी)के तृतीय सर्ग में कैकयी के आग्रह पर सीता रावण के सिर्फ अंगूठे का चित्र बनाती है जिसे कैकयी पूरा करती है, और राम को बुलाकर नारीचरित्र की मालोचना करती है
यत्र यत्र मनोलग्नं स्मर्यते हृदि तत्सदा ।
स्त्रियाश्च चरित्रं को वेत्ति शिवाद्या मोहिताः स्त्रिया ॥ 'काश्मीरी रामायण' अथवा 'रामावतारचरित' (अट्ठारहवीं शताब्दी) में दिवाकर भट्ट ने रावण के चित्र के ही कारण सीता-त्याग को चरितार्थ होते निरूपित किया है। राम की सगी बहिन सीता से चित्र बनवाती है ।
___ नर्मदा द्वारा रचित गुजराती रामायण 'रामायणनोसार' (उन्नीसवीं शताब्दी) के अनुसार राम सीता को रावण का चित्र खींचते हुए और अपनी दासी से रावण का वृतांत कहते हुए सुनते हैं ।
जैन हिन्दी रामकथा 'पद्म पुराण' (सन् 1661) में दौलतराम ने भी रावण के चित्र का उल्लेख किया है।
सम्राट जहांगीर के समय में मुल्लाह मसीह या सादुल्ला करावनी तखल्लुस मसीह ने फारसी में लिखित "रामायण मसीही' अथवा "हदीस-इ-राम-उ-सीता" के अनुसार राम की बहिन ने सीता से रावण का चित्र खिंचवाकर कहा कि सीता रात-दिन इस चित्र की पूजा करती है। जैन रावरणचित्र-कथा का लोकगीतों पर प्रभावः
इस मूल स्रोत को हमारे लोकगीतों ने भी स्वीकार किया है । लोकगीतों में सीता-परित्याग की घटना का अत्यन्त मार्मिक वर्णन तथा सीता का चरित्र चित्रण मिलता है । एक अवधी सोहर लोकगीत में ननद के कहने से सीता ने रावण का चित्र बनाया था--
ननद भौजाई दुइनों पानी गयीं भरे पानी गयीं। भौजी जोन खन तुम्हें हरि लेइ ग उरेहि देखावह हो । जोमें खना उरेहों उरेहि देखावउं, उरेहि देखावंउना । ननदी सुनि. पइहैं बिरना तोहार तो देसवा निकरि हैं हो। लाख दोहइया राजा दसरथ राम मथवा छुवी, राम मथवा छुवौना।
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महावीर जयन्तो स्मारिका 71
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