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पर संघर्ष, विरोध और टकराहट ही ज्यादा था। के प्रतीक हैं। दोनों पंखों की दिशाए भिन्न हैं, यह परिस्थिति मनुष्य की मनुष्य से तोड़ने वाली लेकिन वे कोकिल की गति में एक-दूसरे के पूरक थी। महावीर विचार-भेद और पथ-भिन्नता के हैं, सहयोगी हैं। सहअस्तित्व उनकी सार्थकता है । बावजूद मानव-मात्र के प्रति आदर और प्राणि- कोकिल का गाढ़ा रंग इस बात का द्योतक है कि मात्र के प्रति समता उत्पन्न करना चाहते हैं। उसमें सब रंग समाहित हैं। वह आकाश-विहारी बारह वर्ष की मौन-साधना से उनमें इस दृष्टि का है। अनन्त प्रकाश में विचरण करने वाला ऊँचे प्राविर्भाव हुआ। उनकी यह दृष्टि ही अनेकान्त है। से, सूक्ष्मतापूर्वक, दूर तक निरीक्षण करता है और
कहा जाता है कि केवलज्ञान-प्राप्ति के पर्व अनन्तता का अनुभव करता है। ग्रन्थकार ने इस भगवान महावीर को कुछ स्वप्न पाये थे उनमें से प्रताक द्वारा अनेकान्त का एक सरस एवं सुन्दर एक स्वप्न में उन्हें चित्र-वित्रित्र पंखों वाला एक अनन्त व्यापी चित्र प्रस्तुत किया है। महान पुस्कोकिल दिखायी दिया। इसे देखकर मनुष्य स्वतंत्र इकाई भी है और समष्टि का प्रतिबद्ध हुए, उन्हें केवलज्ञान हो गया। इस स्वप्न अंग भी है। मनुष्य ही नहीं हर प्राणी की स्वतंत्र का उल्लेख व्याख्या प्रज्ञप्ति नामक जैन आगम में सत्ता है, उसकी अपनी निजता है. वैयक्तिकता है । मिलता है। वहीं इस स्वप्न के फल के विषय में प्रत्येक जीव अपने कर्म का भोक्ता और कर्ता होता कहा गया है कि महावीर स्व-पर सिद्धान्त का है। मनुष्य बाह्य रूप में या कि सांसारिक दृष्टि प्रतिपादन करने वाले विचित्र द्वादशांग का उपदेश से. आर्थिक दृष्टि से पराधीन या बंधा हुमा सा करेंगे।
लगता है, फिर भी प्रात्मगुरण की दृष्टि से वह
स्वतन्त्र अस्तित्व रखता है। उसमें स्व-पर-हित कभी-कभी सपने बड़े सार्थक हो जाया करते
सोचने तथा तदनुसार चलने की बुद्धि, भावना, हैं। उनसे जीवन में मामूल परिवर्तन पा जाता है,
शक्ति पीर दृष्टि होती है । वह अनुभव करता है हष्टि बदल जाती है, उलझनें खुल जाती हैं,
कि उसका अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व है। यह सब है, समाधान मिल जाता है और रास्ता प्रकाशमान्
लेकिन इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि हो उठता है। यह एक प्रानन्द का क्षण होता है,
वह सामाजिक भी है । समाज के बिना मानवीय जिसमें मनुष्य को लगता है कि सम्पूर्णता की
विकास की, उन्नयन की सम्भावना भी नहीं। उपलब्धि हो गयी । मुझे तो लगता है कि उनके
नितान्त और निरपेक्ष रूप में मनुष्य वैयक्तिक है, केवलज्ञान का उनकी सर्वज्ञता का रहस्य इसी क्षण
न सामाजिक । वैयक्तिकता और सामाजिकता के में निहित है।
तटों के बीच अनेकान्त के सेतु पर ही विवेकपूर्वक - यह पुस्कोकिल अनेकान्त का या स्याद्वाद का
एवं सापेक्षता पूर्वक विचरण किया जा सकता है । सार्थक प्रतीक है । अनेकान्त दृष्टि-सम्पन्न प्रत्येक के
बूंद के बिना सागर नहीं बनता। लेकिन सागर से विचार का प्रादर करता है, उनमें सत्य का दर्शन
पृथक बूद का व्यक्तित्व कैसा और कितना ? करता है और यह तभी सम्भव है जब उसकी वाणी या भाषा में मिठास हो, माधुर्य हो, अमृत. मनुष्य का समग्र जीवन सत्य की खोजों का रस हो । कोकिल का कण्ठ स्वर ऐसा ही होता है। परिणाम है। मानव-सृष्टि के मादि काल से सत्य कठोर और पाषाण-सूक्ष्म व्यक्ति भी कोयल की की खोज हो रही है। हजारों-हजार मनीषियों, मीठी कूक सुनकर पिघल जाता है, द्रवित हो जाता ऋषि-मुनियों, योगियों तथा वैज्ञानिकों ने सत्य की है । कोकिल के चित्र-विचित्र पंख अनेक दृष्टिकोणों खोज में अपने को गला-वपा दिया है। हमारी
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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