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________________ तीर्थंकर वर्द्धमान * उपाध्याय मुनिश्री विद्यानन्दजी महाराज विदेह देश स्थित लिच्छिवि गणतन्त्र भारत उसका मन-मन्दिर एक दिव्य पालोक से प्रकाशित का प्राचीनतम गणराज्य था। उसके गणप्रमुख हो उठा। राजा चेटक थे। उनके एक अत्यन्त सौम्य स्वभाव इन्द्र ने गर्भवती माता की सेवा के लिए 56 वाली त्रिलोक सुन्दरी त्रिशला नामक कन्या थी। दिव्य कुमारी देवियां भेजी। धीरे-धीरे वह घड़ी उसके शील एवं सौजन्य के कारण उसका नाम भी प्रा पहुंची जब विश्व को अहिंसा का परम प्रियकारिणी भी था। राजा सिद्धार्थ और रानी विशुद्ध मार्ग दिखलाने वाला बर्द्धमान-महावीर त्रिशला अपने नन्द्यावर्त राजप्रासाद में वृषभदेव ईसा पर्व 598 सिद्धाथि संवत्सर चैत्र शुक्ला 13 और पारसनाथ प्रादि तीर्थ करों की भक्ति-पूजा (त्रयोदशी) सोमवार को जननी के गर्भ से अवतरित करते हुए अत्यन्त सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे हए। इस शूभ घड़ी पर देवताओं ने नंद्यावर्त थे। ईसा पूर्व ५६६ काल संवत्सर आषाढ़ शुक्ला राजप्रसाद तथा नगर पर रत्नों की वर्षा की । ६ (छठ) शुक्रवार को प्रियकारिणी त्रिशला ने राज्य में चारों और खुशहाली छा गई। शस्य रात्रि में सोलह शुभ स्वप्न देखे । प्रातः काल वह श्यामला वसुन्धरा का अनुपम सौन्दर्य उसकी अत्यन्त प्रसन्न होकर अपने स्वामी राजा सिद्धार्थ प्रफल्लता को व्यक्त कर रहा था। राजप्रासाद में के पास पहुंची तथा उनसे अपने स्वप्नों का फल भी सुख और शान्ति की अभिवृद्धि होने लगी। पूछा। राजा सिद्धार्थ ने ज्योतिष गणना एवं इसे लक्ष्य करके माता-पिता ने बालक का नाम अवविज्ञान के द्वारा फल बताया-"रानी, तुम्हारे वर्द्धमान अर्थात-सतत वृद्धि को बढ़ाने वालागर्भ से एक महान् पुत्र का जन्म होगा, जो प्रात्म वर्द्धमान रखा। कल्याण करते हुए विश्व का महान् कल्याण करेगा। तप्त ताम्रतनु भातुसम गात्र वह हिंसा, चौर्य, असंयम मादि से संत्रस्त मानव यह पूर्वाचल प्रत्यूष पथिक को कल्याण का श्रेयोमार्ग प्रदर्शित करेगा।" रानी दिगम्बर पथ के उन्नायक का मन प्रफुल्लित हो उठा। सहसा उसके मुख से कृपया हर लें मिथ्या तिमिर ।। हृदय की बात फूट पड़ी -- क्या मैं ऐसे महान् पुत्र की मां बनूगी ? रानी त्रिशला के हृदय कमल बालक वर्द्धमान जन्म से ही महान तेजस्वी की उस प्रफुल्लता का अनुभव कौन कर सकता है ? था। उसके जीवन की अनेक महत्वपूर्ण घटनाएं महावीर जयन्ती स्मारिका 77 1-71 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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