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होकर भी रूप विसर्जित हो गया। 'ॐकार' आदि प्रतीक अनेकांती को न अहंकार पैदा हो पाता है, न रागादि विचार चिह्न, जीवन संभावनाओं के ही रूप हैं।
भाव ।
आइन्स्टीन के सापेक्षवाद ने निरपेक्ष को मान्यता नहीं दी। उन्होंने वस्तु की संहति (mass), लंबाई, चौड़ाई रूप क्षेत्र को, उसके अबंधित समय को तथा अवगाह रूप जुड़े अंतरिक्ष (स्पेस) को निरपेक्ष नहीं है—ऐसा सिद्ध किया ।
उन्होंने कहा कि वेग के कारण तथा संदर्भ भेद के कारण अंतर आ जाता है। जैसे प्रकाश-वेग से गतिशील वस्तु की लंबाई, विरामावस्था की वस्तु की लंबाई से कम हो जाती है, जबकि घटनाएं एक साथ घटित हों। लेकिन एक उसे प्रकाश-वेग से गतिमान राकेट में बैठकर देखे और दूसरा स्थिर अवस्था में रहकर देखे, तो दोनों अवलोकनकर्ताओं को वे अलग-अलग समय की दो घटनाएं प्रतीत होगी।
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अंतर्गक्षत्रीय यात्राओं में, गति की अवस्थाओं में, वेश के संकुचन एवं काल के प्रसारण के विचित्र परिणाम होते हैं। यदि हम पृथ्वी से एक प्रकाशवर्ष की दूरी पर स्थित एक नक्षत्र की यात्रा पर प्रकाश वेग से जाएं, तो जाने और लौटने में कम से कम 18 वर्ष लगेंगे। लेकिन यह हमारा केवल भ्रम है। यदि हम प्रकाश-वेग से चलें तो हमारी घड़ियां, हृदय पिंड, श्वासोच्छ्वास, रक्त परिवहन, पाचन क्रिया आदि सभी सत्तर हजार गुणन से मंद हो जाएंगे और हमारा एक मिनट पृथ्वीवासियों के सत्तर हजार मिनट के बराबर होगा। 18 वर्ष की पार्थिव अवधि हमारे लिए कुछ घंटों के बराबर होगी। यदि सुबह का नाश्ता लेकर हम वहां पहुंचे तब तक दोपहर की भूख लगेगी और वापस पृथ्वी लौटने तक रात का समय हो जाएगा। लेकिन यहां विचित्र घटना घटेगी। पृथ्वी के 18 वर्ष व्यतीत हो चुके होंगे। वह पुत्र, जो 17 वर्ष छोटा था अपने पिता से, एक वर्ष बड़ा हो जाएगा। विज्ञान के इन तथ्यों से निरपेक्षवाद का खंडन होता है सर्वधा निरपेक्ष कुछ नहीं चल सकता।
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समन्तभद्र स्वामी ने युक्त्यनुशासन में कहा है
एकांत धर्माभिनिवेशमूला, रागादयोग कृतिना जनानाम्। एकांत हानाच्च यमदेव, स्वाभाविकत्वाच्च सम मनस्ते || 5 || अर्थात् एकांत आग्रह से एकांती, अहंकारी हो जाता है। अहंकार से राग-द्वेष और पूर्वाग्रह हो जाते हैं, जिससे वस्तु स्वरूप का यथार्थ दर्शन नहीं हो पाता ।
136 • अनेकांत विशेष
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अनेकांत के पथ पर चलकर अहिंसा की साधना सहिष्णु बनती है। इस प्रकार अनेकांत सह अस्तित्व का पक्षधर होता हुआ सहिष्णु होने की बात करता है। वह ऐसा कुछ नहीं करना चाहता कि आपकी हस्ती मिटे और स्वयं भी मिट जाए।
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महावीर जानते थे कि मनुष्य का अहंकार अहिंसा का रास्ता रोक लेगा, इसलिए उन्होंने अनेकांतरूपी राडार मनुष्य के हाथ थमाया। अनेकांत के बिना अहिंसा वस्तुतः पंगु है ।
यदि राष्ट्रीय एकता और भावात्मक एकता को मजबूत बनाना है, विश्व समस्याओं का एक सम्मत समाधान खोजना है, जिससे संघर्ष, रक्तपात रुक सके तो शलाका पुरुष महावीर के अनेकांत को अंगीकार करना होगा।
एक वैचारिक क्रांति के द्वार पर बैठे सजग प्रहरी की भांति है यह अनेकांत। इसमें समाजवादी समाज-संरचना और धर्म निरपेक्षता की भावना विद्यमान है अनेकांत के खोलकर, मानवता को गौरवान्वित कर सकता है। गवाक्षों से प्रत्येक व्यक्ति व प्रत्येक संप्रदाय, सत्य के द्वार
सत्य दर्शन का त्रिभंगी एवं सप्तभंगी सिद्धांत
सत्य दर्शन एवं वस्तु स्वरूप की संपूर्ण व्याख्या तीन 'स्यात्' से की जा सकती है
जीवन-व्यवहार जितना अधिक व्यापक दृष्टिकोण हो सकती। वाला होगा वह अनेकांत दृष्टि वाला ही होगा।
(1) स्यात् है' (2) स्यात् 'नहीं है' (3) स्यात् नाम से जाना गया। समाहित है।
वे चाहते हैं कि दूसरों के लिए भी हाशिया छोड़ा जाए। शब्द को पकड़कर बैठने से प्रयोजन की सिद्धि नहीं
स्वर्ण जयंती वर्ष जैन भारती
'नहीं भी और है भी यह त्रिभंगी के महावीर की दृष्टि में 'ही' नहीं 'भी'
जैसे हिंसा का अर्थ है— किसी के प्राणों का वियोग करना। परंतु देश रक्षा के लिए, शत्रु आतताई का वध खोलता है। करना हिंसा नहीं है । अनेकांत सभी संभावनाओं के द्वार
उक्त त्रिभंगी को महावीर ने सप्तभंगी बनाया।
उन्होंने कहा- अब तीन से काम नहीं चलेगा। सत्य कहना बड़ा जटिल है जैसे कोई कहता है 'यह घड़ा है'
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मार्च - मई, 2002
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