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पारिवारिक क्षेत्र में अहिंसक व्यवहार का महत्त्वपूर्ण लिए आवश्यकता है धार्मिक सहिष्णुता और सर्व-धर्म घटक है—समन्वय। विभिन्न आदर्शों, विश्वासों एवं समभाव की। रुचियों में समन्वय निश्चित रूप से संभव है। इस हेतु राजनीतिक क्षेत्र में अनेकांत अनैकांतिक जीवन शैली का प्रशिक्षण उपयोगी एवं
वर्तमान राजनीतिक जगत भी वैचारिक संकुलता से उल्लेखनीय भूमिका निभा सकता है। अनेकांत स्वतंत्रता को
परिपूर्ण है। पूंजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद, फासिस्टवाद स्वीकार करता है, किंतु अंतरनिर्भरता एवं संबंधों के मूल्य
आदि अनेक राजनीतिक विचारधाराएं तथा राजतंत्र, पर नहीं। सह-अस्तित्व स्वीकार्य है, किंतु अन्याय के मूल्य
प्रजातंत्र, कुलीनतंत्र, अधिनायकतंत्र, सैन्यतंत्र, धर्मतंत्र आदि पर नहीं। समता स्वीकार्य है, किंतु विभिन्नताओं में एकता
अनेकानेक शासन प्रणालियां वर्तमान में प्रचलित हैं। मात्र के वास्तविक मूल्य पर नहीं। वास्तव में शांतिपूर्ण सह
इतना ही नहीं, उनमें से प्रत्येक एक-दूसरे की समाप्ति के अस्तित्व का आधारस्तंभ इतना क्षीण नहीं होना चाहिए कि
लिए प्रयत्नशील है। विश्व के राष्ट्र खेमों में बंटे हुए हैं और मात्र विभिन्नताओं के कारण ध्वस्त हो जाए।
प्रत्येक खेमे का अग्रणी राष्ट्र अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने हेतु धार्मिक क्षेत्र में अनेकांत
दूसरे के विनाश में तत्पर है। अनेकांत दृष्टिकोण का उपयोग धार्मिक क्षेत्र में आज के राजनीतिक जीवन में अनेकांत के दो सहिष्णता व सर्व-धर्म समभाव हेतु सफलतापूर्वक किया जा व्यावहारिक फलित वैचारिक सहिष्णता और समन्वय सकता है। विश्व के विभिन्न धर्माचार्यों ने अपने युग की अत्यंत उपादेय हैं। मानव जाति ने राजनीतिक जगत में तात्कालिक परिस्थतिया से प्रभावित हाकर अपन सिद्धाता राजतंत्र से प्रजातंत्र तक की जो लंबी यात्रा की है, उसकी एवं बाह्य नियमों का प्रतिपादन किया। किंतु मनुष्य की अपने सार्थकता अनेकांत दष्टि को अपनाने में ही है, विरोधी पक्ष के धर्माचार्यों के प्रति ममता एवं उसके अपने मन में व्याप्त
द्वारा की जाने वाली आलोचना के प्रति सहिष्णु होकर अपने आग्रह और अहंकार ने उसे अपने धर्म या साधना पद्धति को दोषों को समझना और उन्हें दूर करने का प्रयास करना आज ही एकमात्र एव अतिम सत्य मानने को बाध्य किया। के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। विपक्ष फलस्वरूप विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के बीच सांप्रदायिक A
प्रदायक की धारणा में भी सत्यता हो सकती है और विरोधी दल की वैमनस्य का प्रारंभ हुआ।
उपस्थिति में अपने दोषों के निराकरण का अच्छा अवसर इतिहास साक्षी है कि धार्मिक असहिष्णुता ने विश्व में मिलता है। इस विचार दृष्टि तथा सहिष्णुता एवं सहजघन्य दुष्कृत्य कराए। सांप्रदायिक आग्रह, धार्मिक अस्तित्व की भावना में ही प्रजातंत्र का उज्ज्वल भविष्य है। असहिष्णुता और सांप्रदायिक विद्वेष को जन्म देने वाले कुछ राजनीतिक क्षेत्र में संसदीय प्रजातंत्र वस्तुतः राजनीतिक मुख्य कारण निम्न माने जा सकते हैं
अनेकांतवाद है। दार्शनिक क्षेत्र में जहां भारत अनेकांतवाद का 1. ईर्ष्या, 2. किसी व्यक्ति की प्रसिद्धि की लिप्सा, सृजक है, वहीं वह राजनीतिक क्षेत्र में संसदीय प्रजातंत्र का 3. वैचारिक मतभेद, 4. आचार संबंधी नियमोपनियम में समर्थक है, अतः आज अनेकांत का व्यावहारिक क्षेत्र में अंतर, 5. व्यक्ति या पूर्व संप्रदाय के द्वारा अपमान या उपयोग करने का दायित्व भारतीय राजनीतिज्ञों पर है। खींच-तान।
निष्कर्षतः अनेकांत दर्शन का सैद्धांतिक पक्ष तथा अनेकांत विचार दृष्टि विभिन्न धर्म-संप्रदायों की वैज्ञानिक प्रयोगों पर आधारित तथ्य जगत में विरोधी युगल समाप्ति के द्वारा एकता का प्रयास नहीं करती है, क्योंकि के सह-अस्तित्व को स्वीकार करता है, साथ ही इसी सहवैयक्तिक रुचि-भेद तथा देश-कालगत भिन्नताओं के होते अस्तित्व को, जीवन को, जीवन का आधार मानता है। हुए विभिन्न धर्म एवं विचार संप्रदायों की उपस्थिति इसका बोध हो जाने से जीवन में समन्वय, सह-अस्तित्व, अपरिहार्य है। एक धर्म या एक संप्रदाय का नारा असंगत सहिष्णुता, संप्रदाय निरपेक्षता आदि आदर्श मूल्यों की एवं अव्यावहारिक ही नहीं अपितु अशांति और संघर्ष का स्थापना संभव हो सकती है। दृष्टिकोण परिवर्तन के लिए कारण भी है। अनेकांत विभिन्न धर्म-संप्रदायों की समाप्ति अनेकांत की सहायक भूमिका अपेक्षित है, जिससे मानव में का प्रयास न होकर उन्हें एक व्यापक पूर्णता में सुसंगत रूप वैचारिक आग्रह का बोध समाप्त होकर दूसरे के विकास के से संयोजित करने का प्रयास हो सकता है, लेकिन इसके प्रति भी समान भावना का विकास हो सके।
स्वर्ण जयंती वर्ष
........................................ मार्च-मई, 2002
जैन भारती
अनेकांत विशेष. 109
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