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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
शांतिमय उपायों के प्रयोग में उत्तरोतर प्रगति हो रही है, विश्व में शस्त्र संग्रह करने वाले शक्तिशाली राष्ट्र भी निःशस्त्रीकरण सम्मेलनों में भाग ले रहे हैं और कम से कम सिद्धान्त रूप में यह स्वीकार कर रहे हैं कि शांतिमय ( हिंसा रहित ) उपायों से ही आपसी विवादों का निपटारा किया जा सकता है । अहिंसा के व्यावहारिक उपयोग को इन्हीं उदाहरणों से पुष्ट किया जाता है और यह दावा किया जाता है गांधी दर्शन के अहिंसा का सिद्धान्त पूर्ण रूप से व्यवहारिक है । किंतु गाँधीदर्शन के अहिंसा के व्यवहार पक्ष की स्थापना इन उदाहरणों के प्रदर्शन मात्र से सम्भव नहीं । इसके लिए अहिंसा के आन्तरिक पक्ष पर विचार करना भी आवश्यक लगता है । अहिंसा के आन्तरिक पक्ष से हमारा तात्पर्य उन मनोभावों के प्रतिष्ठापन और निराकरण से है जो साक्षात् या परम्परया अहिंसा की वृत्ति में सहायक और बाधक होते हैं जैसे प्रेम, दया, करुणा, क्षमा तथा घृणा, विद्वेष, भय और क्रोध । गाँधी दर्शन में अहिंसा की प्रतिष्ठा में प्रेम ओर क्षमा की स्थापना तथा घृणा एवं भय की निवृत्ति पर अधिक बल दिया गया है । इस आन्तरिक पहलू के आधार पर अहिंसा के व्यवहार पक्ष पर विचार करने पर लगता है कि अहिंसा की स्थापना व्यवहारिक जीवन में या तो नहीं हो रहीं है या हो भी रही है तो अत्यधिक मंद गति से । बढ़ते हुए अपराधों और राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर किए जाने वाले छल छद्मों को देखने से लगता है कि हिंसा की वृत्ति ही बढ़ती जा रही हैं । विश्व के सबल राष्ट्रों का निःशस्त्रीकरण की ओर अग्रसर होना, प्रेम प्रेरित न होकर भय प्रेरित ही है. क्योंकि अत्यधिक संहारक शस्त्रों के संग्रह से सबको अपने विनाश की आशंका हो रही है । इसके आधार पर यह कहना संगत लगता है कि व्यक्तिगत पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और विश्व के जीवन में प्रेम के बदले भय के वातावरण का ही विस्तार और प्रसार हो रहा है ।
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गाँधी दर्शन में अहिंसा पर विचार करते समय इस बात पर अधिक बल दिया गया है कि अहिंसा दुर्बल लिए नहीं है, यह सबल के लिए है । दुर्बल भयभीत रहता है इसलिए उसके मन में अहिंसा वृत्ति प्रतिष्ठित ही नहीं हो सकती । अहिंसा के सिद्धान्त के रूप में इस मान्यता के महत्व को स्वीकार करते हुए व्यवहार पक्ष की दृष्टि से यह अत्यधिक संदेहास्पद लगता है क्योंकि शारीरिक और शस्त्र की दृष्टि से सबल व्यक्ति कभी अहिंसक नहीं बनता है । अहिंसा को शस्त्र या ढाल के रूप में प्रयोग करने वाले सदा शारीरिक और शस्त्र की दृष्टि से दुर्बल रहते हैं जैसे परिवार में बालक अपनी माँग की पूर्ति के लिए जमीन पर अपना मस्तक पटकता है, रोता है, खाना नहीं खाता है और उसी
परिसंवाद - ३
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