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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं इस सिद्धान्त की घोषणा हो रही है। इससे बचने का एक मात्र उपाय है सत्याचरण । इस आचरण को जीवन में उतारने पर शुद्ध घी में डालडा नहीं मिलाया जाएगा। एक रुपये की वस्तु दस रुपये में नही बेची जाएगी। उत्कोच नहीं लिया जाएगा। किसी को किसी प्रकार की पीड़ा नहीं दी जायगी। क्योंकि सभी का लक्ष्य सत्य प्राप्ति हो जाएगा, असत्याचरण से सभी को भय होगा, कर्मफल एवं पुनर्जन्म पर सभी को विश्वास होगा। जैसा कि गांधी जी को था। ऐसे महान् पुरुषों के द्वारा परिशीलित सत्यानुष्ठान की पद्धति मानवता का सर्वातिशय रूप में पोषण करती है, उसका अनुष्ठान विश्व के लिये परमोपयोगी है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग भवेत् ॥
शान्तिः शान्तिः शान्तिः
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