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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
के हित में सुरक्षित रखें। उनकी न्यासिता राज्य नियन्त्रित होगी। गांधीजी के भक्त श्रीप्यारेलाल जी के एक नोट के अनुसार नियन्त्रित न्यासिता में राज्य को सम्पत्ति की मिल्कियत के सम्बन्ध में कानून पास करने का अधिकार होगा, उत्पादन का स्वरूप समाज के हित में निश्चित होगा, श्रमिकों के लिए जीवन निर्वाह योग्य मजदूरी की व्यवस्था होगी, उच्चतम आय की सीमा निर्धारित की जायेगी तथा उच्चतम और निम्नतम आमदनी का अन्तर धीरे-धीरे कम करते हुए समता की ओर लाया जायेगा ।
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गांधीजी वितरण के सम्बन्ध में समता के सिद्धान्त को स्वीकार करते थे । वह चाहते थे कि आप का इस तरह समान वितरण हो कि अपनी 'स्वाभाविक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सबको सनुचित साधन उपलब्ध हों, पर किसी को व्यर्थ की कृत्रिम आवश्यकताओं पर वन का अपव्यय करने का अधिकार न हो । वह कहते थे कि 'जब तक श्रमिकों को जीवन निर्वाह योग्य वेतन नहीं मिलता तब तक नैतिकता और क्षमता की पुष्टि भी नहीं हो सकती । वह यह भी कहते थे कि समाज के साधनों का ध्यान रखे बगैर जिन लोगों ने अपनी आवश्यकताओं को बढ़ा लिया है वह अपनी कृत्रिम जीवन - विधि की सन्तुष्टि की समाज से मांग करने के हकदार नहीं हैं ।' गांधीजी यह स्वीकार करते थे कि समाज में बहुत से लोग हो सकते हैं कि जो जीवन निर्वाह से अधिक आमदनी करने की क्षमता रखते हैं । वह शक्ति भर काम करें, जीवन निर्वाह योग्य साधन अपने पास रखें, बाकी समाज हित में समर्पण कर दें ।
उनका सिद्धान्त था
सम्पदं लोकयात्रार्थं लोकः सर्वः समर्जयेत । अधिकं यदि सामर्थ्यं तल्लोकार्थं समर्पयेत् ॥
यह सिद्धान्त श्रीमद्भागवत् के इस श्लोक में प्रतिपादित सिद्धान्त के अनुकूल है । 'यावश्रियेत जठरं तावत् स्वत्त्वं हि देहिनाम् । अधिकं योऽभिमन्येत सः स्तेनो दण्डमर्हति ।
आर्थिक व्यवस्था के सम्बन्ध में गांधीजी द्वारा प्रतिपादित बहुत से विचार सभी प्रगतिशील विद्वानों की दृष्टि में सार्थक हैं । सभी इस बात को स्वीकार करते हैं कि स्वतन्त्र प्रतिस्पर्धा और निजी लाभ पर आश्रित बृहद आर्थिक व्यवस्था से देश का काम नहीं चल सकता। इस प्रकार की आर्थिक व्यवस्था में अन्ततोगत्वा बड़े बड़े
परिसंवाद - ३
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