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भारतीय चिन्तन परम्परा में नये दर्शन की सम्भावनाएं
३१३ इन नियमों में लाघव-गौरव की दृष्टि से कहीं-कहीं पर ये छोड़े भी जा सकते हैं। जैसे राजषिभरत किसी नदी के तट पर गायत्रीमन्त्र का जप कर रहे थे, उसी समय एक सिंह की गर्जना सुनकर भयभीत हरिणी नदी में कूद पड़ी, उसके गर्भ से शिशु गिर पड़ा, वह जल में छटपटाने लगा, उसे दुःख में देखकर राजर्षि भरत अपना जप छोड़ कर जल में से उस हरिण शिशु को निकाले तथा उसे सम्हाले। यहाँ पर उस समय गायत्री जप करना लघु नियम था, अतः लघुनियम का त्याग किया। इस प्रकार बलाबल का विचार करने से नियमों के पालन में कहीं बाधा न होगी। "तत्र को मोहः कः शोकः एकत्वमनुपश्यतः" की भावना का उत्थान होगा।
इस प्रकार इस लघुकाय निबन्ध में भारतीयचिंतनपरम्परा में नये दर्शन की सम्भावना" विषय पर विचार करते हुए यह दर्शाया गया है कि प्राचीन दर्शनों के ही सिद्धान्तों के प्रायोगिक प्रचार प्रसार से समस्याओं का समाधान सम्भव है, उन्हीं दृष्टियों का ऊहापोह नूतन दृष्टान्तों से करना सम्भवतः नया दर्शन कहा जा सकता है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा काश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ॥
शान्तिः शान्तिः शान्तिः
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परिसंवाद-३
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