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________________ नये जीवन-दर्शन की कुछ समस्याएं और सम्भावनाएं प्रो० कृष्णनाथ नये दर्शन की आवश्यकता क्यों है ? जब पुराने सोच के रास्ते चलते-चलते आगे जा कर बन्द हो जाते हैं; तो नये रास्ते की जरूरत महसूस होती है । हो सकता है कि यह नया रास्ता बिलकुल नया न हो, पहले भी बताया गया हो, लेकिन उसका मिजाज, उसकी भाषा, भंगिमा नयो हो जाती है। फिर वह भी चलते-चलते उसी परम्परा का अंग हो जाता है और तब नये उद्भावन की आवश्यकता होती है । इस प्रकार विचार का प्रवाह नया होता है और चलता जाता है। नये दर्शन की सम्भावना पर विचार करने का मतलब ही है कि जो प्राच्य और पाश्चात्य, प्राचीन और नवीन दर्शन हमें परम्परा से प्राप्त हैं वे हमारे लिए पर्याप्त नहीं हैं। आज के मनुष्य की जो अन्तर-बाह्य जरूरतें हैं उन्हें पूरा नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए हमें नये दर्शन की आवश्यकता महसूस हो रही है। लेकिन प्राचीन भारतीय दर्शन परम्परा में कमी क्या है ? षड्दर्शन हैं, आस्तिक-नास्तिक दोनों दर्शन हैं, सर्वदर्शनसंग्रह ही है। फिर किसी नये दर्शन की जरूरत क्या है ? कमी किस बात की है ? कहाँ है ? ___ मुझे लगता है कि कमी दर्शन के उन ऊपरी ढाँचों में नहीं है जो हजार वर्षों से अधिक से बहुत जतन और बहुत तर्कसंगत ढंग से बनाये गये हैं। इनमें अगर कोई कमी है तो वह यह है कि यह ढाँचे जिन मान्यताओं पर खड़े हैं वे मान्यताएँ आज की दुनिया की नहीं हैं। वे आधार बदल गये हैं या कम से कम उनका कस, उनका बल बदल गया है। जीवन और दर्शन के आधार ईश्वर-अनीश्वर, आत्माअनात्मा, एक या दो या तीन या चार प्रमाण के नहीं हैं। ये आधार हैं कर्म, कर्मफल, पुनर्जन्म जैसे विश्वास और वर्ण-आश्रम जैसी संस्थाएँ। ये विश्वास और संस्थाएँ आज की दुनियां में नहीं हैं, ऐसा तो नहीं है। लेकिन उनके पीछे जो परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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