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भारतीय परम्परा के अनुशीलन से नया दर्शन संभव
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इस निबन्ध के प्रारम्भ में उपस्थित अनेक विकल्पों का समावेश यदि भारतीय दर्शन में किया जाय तो निश्चय ही इसके नवीन प्रस्थानों की आवश्यकता को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता। उक्त समस्त विकल्पों के आधारों को भी भारतीय दर्शन के प्रस्थान मानकर उन पर विचार करना होगा।
__इसलिए नये प्रस्थानों के समावेश का प्रश्न नवीन परिप्रेक्ष्य के स्पष्टीकरण पर निर्भर है।
उक्त विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि भारतीय दर्शन के स्वरूप तथा क्षेत्र उसके वर्गीकरण तथा उसके नवीन प्रस्थान की समस्या एक व्यापक एवं जटिल समस्या है। उसको सुलझाना कोई सरल काम नहीं है। इसके लिए आग्रह रहित होकर संघठित प्रयत्न करने की आवश्यकता है।
परिसंवाद-३
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