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भारतीय चिन्तन परम्परा में नये दर्शनों की सम्भवनाएं (२१) दार्शनिकविधि एवं वैज्ञानिकविधि में क्या सम्बन्ध है ? द्वितीय दिवस ३०-३-७६ विषय :--आधुनिक जीवन मूल्य और प्राचीन आध्यात्मिक दर्शन ।
(समाज, राज्य, धर्म और विज्ञान, (१) भारतीय दर्शन आध्यात्मिक है, इसका अर्थ क्या है ?
(२) क्या भारतीय दर्शनों की इहलौकिक एवं आभ्युदयिक व्याख्या भी की जा सकती है?
(३) अध्यात्म का समाज से क्या अनिवार्य सम्बन्ध है ?
(४) समाज, राज्य एवं अर्थ सम्बन्धी दुःखों से मुक्ति क्या दार्शनिक मोक्ष के अन्तर्गत है ?
(५) भारतीयदर्शनों की आधुनिक समतावादी मूल्यों से क्या सम्बन्ध है ? (६) भारतीयदर्शन की दृष्टि से मानव के मूल अधिकार क्या है ? (७) विभेदों को हटाने के लिए क्या वैशिष्ट्य को हटाना आवश्यक नहीं है ? (८) भारतीयचितन में स्वाधीनता और दर्शन का क्या सम्बन्ध है ? (९) क्या भारतीयचिंतनपरम्परा में नये जीवन दर्शन बनने की सम्भावना है ?
(१०) धर्म और नीति में क्या भेद है और उसका दर्शन से क्या सम्बन्ध है ? तृतीय दिवस ३१-३-७६ विषय :-भारतीय दर्शनों का नवीन वर्गीकरण एवं नये प्रस्थान ।
(परम्परागत, विषयगत, तथा अन्य ) (.) भारतीय दर्शनों का नया वर्गीकरण क्या आवश्यक है ?
(२) क्या पाश्चात्य दर्शनों के वर्गीकरण से भारतीय दर्शनों के नये वर्गीकरण में कुछ लाभ लिया जा सकता है ? भारतीय दर्शन के सांप्रदायिक वर्गीकरण की जगह विषयाधारित वर्गीकरण क्या उचित होगा?
(३) भारतीय दर्शन की दृष्टि में दर्शन शब्द के प्रयोग का क्या अभिप्राय है ? जिसमें एक ओर षड्दर्शनों, बौद्धों, जैनों का संग्रह हो जाता है और दूसरी ओर व्याकरण, आगम, तन्त्र आदि भी संगृहीत हो जाते हैं ?
(४) नये प्रस्थानों में भारतीय दर्शनों के वर्गीकरण से ज्ञान में व्यापकता आयेगी या ह्रास।
(५) क्या भारतीय दर्शनों के तीन नये प्रस्थानों को स्वीकार किया जाय, जैसे
परिसंवाद-३
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