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भारतीय चिन्तन परम्परा में नये दर्शनों
की सम्भवनायें
श्रीराधेश्यामधर द्विवेदी अनवरत चितन और नयी जिज्ञासाओं के समाधान के बीच दर्शन की उर्बरता उभरती है। भारतीय दर्शनों ने सामाजिक प्रश्नों की अपेक्षा जीवन के अन्तरंग प्रश्नों के समाधान में शताब्दियों तक गंभीर एवं व्यापक चिंतन किया है। पाश्चात्यदर्शनों ने समाज, राज्य, विज्ञान और जीवन के विविध विकसमान सन्दर्भो के व्यापक आयाम में उभरते नये प्रश्नों की ओर अधिक ध्यान दिया। फलतः पाश्चात्य दर्शन जिस मात्रा में जीवन के बहिरंग प्रश्नों से आज तक जुटे रहे हैं, उस मात्रा में भारतीयदर्शन उससे संशक्त नहीं हुए। भारतीय दर्शनों की गौरवशाली पृष्ठभूमि में नये प्रश्नों के सन्दर्भ में नये चिंतन के लिए पर्याप्त अवसर है। इसके लिए यह आवश्यक है कि नये सन्दर्भ में प्राचीन विचारों की बार-बार मीमांसा की जाय, जिससे नये विश्लेषण एवं वर्गीकरण से विचारों का नवीनीकरण हो। इसके पहले कि हम किसी आशाप्रद निष्कर्ष पर पहुँचें, यह आवश्यक है कि सभी स्थितियों में कुछ चिरन्तन प्रश्नों पर विचार किया जाय, जिससे निष्कर्ष यह निकले कि आधुनिक सन्दर्भ में दर्शन एवं जीवन का लक्ष्य क्या है ? दर्शन का विषय और क्षेत्र क्या है ? इस प्रकार चिंतन से एक ओर अनुभव एवं तर्क की नई विधियों के विकास की भी सम्भावना बढ़ेगी और
दूसरी ओर नये प्रस्थानों के निर्माण द्वारा नये दार्शनिक तथ्यों के उद्गम् के लिये .. अवसर मिलेगा।
ये ही कुछ विचार हैं जो प्रेरित करते हैं कि भारतीय परम्परा में नये वर्शनों के उद्भव पर विचार किया जाय । यहां विचार को स्पष्ट करने के लिए निम्नलिखित प्रश्न प्रस्तुत किये जा रहे हैं। जिनका प्रतिदिन विवेचन होगा। प्रथम दिवस २९-३-७६
विषय:-दर्शन सम्बन्धी भारतीय एवं पाश्चात्य विचार (उद्देश्य, विधि, क्षेत्र)
परिसंवाद-३
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