________________
भारतीय दर्शनों का नया वर्गीकरण परिचर्चा का संक्षिप्त विवरण
२२५
आधार पर किया गया वर्गीकरण शास्त्रों के गम्भीर चिन्तन में सहायक नहीं है । उपस्थित विद्वजनों को इस पर विचार करना चाहिए ।
प्रस्तावित विषय पर बोलते हुए डा० सी० एन० मिश्र ( भागलपुर विश्व - विद्यालय ) ने कहा- वर्गीकरण को सिद्धान्त आधारित होना चाहिए । यदि ( क ) वर्ग का वर्गीकरण तत्त्व की संख्या पर आधारित है तो उसे निम्नलिखित प्रकार से बनाया जाय
( १ ) अनेकवाद ( Pluralism ) चार्वाक, न्याय, वैशेषिक, जैन, मीमांसा और सर्वास्तिवाद ।
( २ ) द्वैतवाद ( Dualism ) सांख्ययोग, और मध्व ।
( ३ ) एकवाद ( Monism ) विज्ञान भिक्षु का सांख्य ।
( ४ ) अद्वैतवाद ( Non-Dualism) अद्वैतवादी ।
नहीं तो दार्शनिक चिन्तन को आधार बनाकर यदि वर्गीकरण करना है तो उसको निम्नलिखित अंगों में बाटा जाय जैसे
( १ ) ज्ञानमीमांसा ( Epistemology ) ।
(२) तत्त्वमीमांसा ( Ontology )।
( ३ ) आचार विज्ञान ( Ethics )।
( ४ ) राजनीतिक दर्शन ( Political Philosophy )
(५) समाजदर्शन ( Social Philosophy )
( ६ ) सौन्दर्य विज्ञान ( Aesthetics )
प्रस्तावित वर्गीकरण की समालोचना करते हुए डा० के० एन० मिश्र (का० हि० वि० वि० ) ने कहा -- प्रस्तावित वर्गीकरण में कोई नवीनता नहीं है । दर्शनों के प्रतिपाद्य विषयों के विकास क्रम को समझा कर यदि विभाजन किया जाय, तो इससे तत्तत् दर्शनों के आनुषंगिक विषयों में भी ज्ञान बने रहेंगे और यह परिचय ऐतिहासिक होगा । वर्तमान में जो दर्शनों का ऐतिहासिक इतिहास बताया जाता है वह दर्शनों का संक्षेप मात्र है, न कि क्रमिक विकास का इतिहास । इसलिए विशेष दर्शनों के विशेष प्रत्ययों की सेटिंग को समझ कर प्रत्ययों के विकास क्रम का इतिहास लिखा जाना चाहिए । इसमें साम्प्रदायिक ज्ञान के साथ-साथ विकासात्मक ज्ञान भी सम्भव होगा । इस प्रकार के अध्ययन से दर्शन के विद्यार्थी को काफी लाभ हो सकेगा ।
परिसंवाद - ३
२६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org