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भारतीय चिन्तन को परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
चिन्तन की सफलता इस पर निर्भर है कि हम दर्शन को एक चिन्तन की प्रक्रिया के रूप में स्वीकार करें जिसके द्वारा ज्ञान को विशुद्ध से विशुद्धतर और विशुद्धतम बनाया जा सके। उन्होंने भारतीय दर्शनों की असाधारणता को योग, तर्क, तथा मोक्ष के रूप में परिभाषित किया।
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उपर्युक्त प्रस्ताव पर विचार करने के पूर्व उस सम्बन्ध में पं० रघुनाथ शर्मा ( भू० पू० वेदान्त विभागाध्यक्ष सं० वि० वि० ) तथा पं० बदरीनाथ शुक्ल (भू० पू० कुलपति सं० वि० वि० ) के लिखित विचार प्रस्तुत किये गये । श्रोशर्मा जी ने कहा कि यदि विषयों के अनुसार दर्शनों का वर्गीकरण किया जाय तो उनका अध्ययन असम्भव अथवा दुःसाध्य हो जायेगा । इसलिए सम्प्रदायानुसार वर्गीकरण किया गया है । भारतीय दर्शन के विषयों का चिन्तन ऋषियों स्वतन्त्र रूप से किया । बुद्ध, जैन, वृहस्पति आदि शास्त्रप्रवर्तकों का चिन्तन स्वतन्त्र हुआ । प्रारम्भ में सभी दर्शनों के मौलिक चिन्तन स्वतन्त्र हुए। बाद में सूत्रों का अवलम्बन करके व्याख्यान रूप से चिन्तन हुआ और हो रहा है । श्रीशर्मा जी ने अनेक दृष्टान्तों के द्वारा यह बताया है कि भारतीय दर्शन विश्वास मूलक धार्मिक चिन्तन मात्र नहीं हैं । सभी चिन्तन धर्म निरपेक्ष हैं । उन्होंने भारतीय दर्शनों का मुख्य रूप से तीन वर्गीकरण बताया
( १ ) न्याय-वैशेषिक
(२) सांख्य योग (३) पूर्वोत्तर-मीमांसा
उन्होंने कहा कि विषयानुसार नये वर्गीकरण में अद्वैतवाद में शून्यवाद, विज्ञानवाद, शक्यद्वैत, शिवाद ेत आदि को जो रखने का प्रस्ताव है यह कथमपि ठीक नहीं है । क्योंकि ये मूलतः अद्वैत सिद्धान्त नहीं हैं । विशिष्टाद्वैत भी मौलिक अद्वैत नहीं है ।
निष्कर्ष में उन्होंने कहा कि परम्परागत भारतीय दर्शन पर्याप्त एवं पूर्ण है । उसमें किसी प्रकार का परिवर्तन अपेक्षित नहीं है ।
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आचार्य पं बदरीनाथ शुक्ल ( भू० पू० कुलपति सं० सं०वि० वि० ) ने भारतीय दर्शनों के विषय परक विभाजन की सम्भावना के सन्दर्भ में कहा कि भारतीय दर्शनों के प्रतिपाद्य विषयों की बहुलता है । उनमें कुछ ऐसे भी विषय हैं जो सभी
परिसंवाद - ३
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