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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
यहाँ विचारणीय विषय यह नहीं है कि आदर्शवाद कैसे पैदा हुआ ? वल्कि मानव मस्तिष्क की आध्यात्मवादी अवधारणाओं का प्रारम्भ अवश्य देखना होगा और वस्तुतः तभी हम निष्पक्ष प्रमाणित हो सकेंगे।
अब तो यह स्पष्ट ही है कि प्राचीन भारत में अध्यात्मवाद की दो धाराएँ थीं। एक आनुभविक तथ्यों पर आधारित थी, तो दूसरी वस्तु जगत से सम्बन्ध रखती थीं। इस प्रकार भारत की विकसित एक प्रणाली ने ऐसा ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न किया जिसके द्वारा मनुष्य को अपने जीवन काल में आने वाली कठिनाइयों और पीड़ाओं से मुक्ति प्राप्त हो सके ।
वस्तुतः भारतीय इतिहास में भौतिकवाद ने भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखा है। भौतिकवाद ने मानवतावाद की रक्षा करते हुए जीवन के प्रति सच्चे प्रेम का सबक सिखाया और सामाजिक उत्थान का साथ दिया। भौतिकवाद के अन्तर्गत अनेक शास्त्रों, जैसे--कला, संगीत, साहित्य, नृत्य और ज्ञान, चित्रकला तथा नाट्यशास्त्र के विकास के साथ ही यौन सम्बन्धों के बारे में अत्यन्त शिष्टतापूर्वक छानबीन की भावना भी पल्लक्ति हुई।
भारतीय दर्शनों के वर्गीकरण के सन्दर्भ में पुझे सिर्फ इतना ही कहना है कि विषय का प्रतिपादन स्वरूप तत्त्वों की दृष्टि से होना चाहिए। वह प्रतिपादन भौतिकवादी और अभौतिकवादी या अध्यात्मवादी रूप में हो सकता है। विषय के बोध के लिए तर्क आदि का प्रयोग किया जा सकता है। किन्तु तर्क को शास्त्र मान लेना उचित नहीं है, बल्कि तर्क को इन्ही के अन्तर्गत समझना चाहिए ।
१. के० दामोदरन् भारतीय चिन्तन परम्परा पृ० ९०
परिसंवाद-३
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