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भारतीयदर्शनों के वर्गीकरण पर एक विचार
श्रीरामविहारी द्विवेदी अनेक दार्शनिकों के द्वारा इस पर विचार होने के बावजूद आज इस प्रश्न की पुनरावृत्ति कि 'भारतीय दर्शन से क्या समझा जाय? दर्शन में भारतीयता क्या है? जिससे भारतीय दर्शनों की असाधारण पहचान समझी जाय' ? विषय की जटिलता का द्योतक है, फिर भी एक अकिंचन प्रयास किया जा रहा है ।
जिस जगत् में हम रहते हैं और जगत के साथ जो हमारा सम्वन्ध है, उसी की सम्मिलित अवधारणा दर्शन है। प्लेटो ( Plato ) ने दर्शन की उत्पत्ति आश्चर्य से बताया है ( Philosophy begings in wonder ) मध्ययुगीन शास्त्रीय चिन्तकों ने- विश्वास के द्वारा ज्ञान की उत्पत्ति होती है (Credo ut Intelligam) प्रतिपादित किया। किन्तु आधुनिक युग का प्रख्यात् विचारक डेकार्ट स (Descartes) ने सन्देह पद्धति [ Method of Doubt ] का अवलम्बन कर सन्देह को ही दर्शन की उत्पत्ति का मूल प्रतिपादित किया । डेकार्टस् ने कहा कि-ज्ञान की उत्पत्ति सन्देह से होती है [ Dubeto ut Intelligam ]। कुछेक ने जिज्ञासा से दर्शन की उत्पत्ति बताई है।
__ स्पष्ट है कि किसी भी नई वस्तु के निर्धारण में द्विविधा का आना स्वाभाविक है । वैदिक ऋषि मनुष्य की उत्पत्ति और उनकी समस्याओं की, ब्रह्माण्ड और प्राकृतिक रूपों की, ज्ञान, विचार, जीवन, कला और उसकी समस्याओं की, चिन्तन और अस्तित्व के मध्य उपस्थित मूलभूत सम्बन्धों की समस्याओं की, मस्तिष्क और पदार्थ के बीच सम्बन्ध की समस्याओं की व्याख्या करने में निरन्तर प्रयत्नशील से प्रतीत होते हैं, और वास्तव में दर्शन का क्षेत्र भी यही है।
दर्शन इस प्रश्न का उत्तर ढूढ़ता है कि इस ब्रह्माण्ड का निर्माण ईश्वर ने किया या यह अनादिकाल से मौजूद है। सबसे पहले पदार्थ का उद्भव हुआ या आत्मा का? अस्तित्व का अथवा विचार का? क्या इस जगत् का वास्तविक ज्ञान
परिसंवाद-३
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