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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
विरोधी क्रिया से है। हिंसा से जीव निष्प्राण होता है । जिस क्रिया से दूसरे को बाधा हो, वह हिंसा है इसलिए किसी अन्य के काम में बिना बाधा डालते हुए अपना काम अहिंसक दृष्टि से करते जाना ही अहिंसा है।
भारतीय धर्मों में यह अहिंसक व्यवहार सम्भव बन सकता है और इससे समाज परिवर्तन भी सम्भव है। क्योंकि यहाँ के धर्मों में बिना दूसरे का समूलोच्छेद करते हुए अपने पवित्र कार्य से दूसरे के ऊपर विजय प्राप्त किया जा सकता है। विजय प्राप्ति के मार्ग सत्य और अहिंसा के रूप में प्राचीन काल में थे तथा उन्हीं को गांधीजी ने व्यावहारिक रूप दे कर इनके पुनरुद्धार के स्वरूप का संस्मरण दिलाया। इसलिए गांधी विचारों का अध्ययन होना चाहिए। यदि उनका परम्परा के सन्दर्भ में अध्ययन किया जाय तो वे और अधिक प्रभावी हो सकते हैं। सम्पूर्णानन्दसंस्कृतविश्वविद्यालय इस सन्दर्भ में गांधी विचारों के अध्ययन का अधिक उपयुक्त स्थान है।
इस गोष्ठी के विवरण को छापते वक्त अन्त में दो निबन्ध श्री आर. आर. दिवाकर जी के दिये गये हैं। ये निबन्ध गांधी विद्यासंस्थान, राजघाट, वाराणसी में गांधी मीमोरियल लेक्चर्स में दिये गये थे। प्रो० राजारामशास्त्री उन दिनों वहाँ के निदेशक थे तथा उनके सुझाव पर ये निबन्ध इसमें दिये गये हैं। इसकी स्वीकृति के लिए संस्थान के निर्देशक डा० के० के० सिंह धन्यबाद के पात्र हैं। प्राचीन परम्परा से निकलने वाले आधुनिकतम मूल्यों के विषयवस्तु का संकलन करना मैं अपना कर्तव्य मानता हूँ और एतदर्थ परिश्रमपूर्वक इस कार्य को सम्पन्न करने में एक आनन्दानुभूति समझता हैं। इसीलिए इस विचार परिचर्चा को सफल करना हम अपना कर्तव्य मानकर करते हैं। प्रो० शास्त्रीजी के सुझाव एवं निर्देश इस सन्दर्भ में बहुमूल्य हैं।
राधेश्यामधर द्विवेदी ... संयोजक
गांधी-दर्शन परिचर्चा सं० सं० वि. वि. वाराणसी
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