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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
सकती है । संसार में एक व्यवस्था है, एक अपरिवर्तनीय नियम है, जो सभी वस्तुओं को, प्राणियों को, जो भी हैं या अनुप्राणित हैं, नियन्त्रित करती है। यह अन्य नियम नहीं है क्योंकि कोई भी अन्य मानव व्यवहार को नियन्त्रित नही कर सकता .. .. तो यह नियम जो प्राणियों का नियमन करता है; ईश्वर है। सृष्टिमूलक तर्क का सुन्दर उदाहरण निम्न लिखित है :
'यदि हम हैं, यदि हमारे माता-पिता एवं उनके भी माता-पिता रहे हैं तो यह मानना उचित है कि इस सृष्टि का भी कोई पिता है।२ नित्यता के आधार पर वे इस प्रकार तर्क देते हैं "मैं धूमिल रूप से यह देखता हूँ कि हमारे चारों ओर की प्रत्येक वस्तु बदल रही है, नष्ट हो रही है। किन्तु इन सभी परिवर्तनों के पीछे एक जीवनी-शक्ति है जो नित्य है, सबको एक में बाँधे हैं। यही इसका सर्जन, विसर्जन एवं पुनर्सर्जन करती हैं। यहाँ पर औपनिषद 'तज्जलान' का सिद्धान्त अत्यन्त स्पष्ट है। ईश्वर ही जगत् का स्रष्टा, पालक एवं संहारक है; वह नित्य, सर्वव्याप्त, सर्वज्ञ एवं सर्वशक्तिमान् है।
औपनिषद 'मृत्योः माममृतं गमय, असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय के आधार पर गांधी इस प्रकार तर्क देते हैं 'मृत्यु के बीच जीवन रहता है असत् के मध्य सत्य एवं अन्धकार के मध्य प्रकाश । अतः ईश्वर सत्य एवं प्रेम है। गांधी आस्था प्रधान व्यक्ति हैं । वे तर्क को गौण स्थान देते हैं।
गांधी के ईश्वर का स्वरूप क्या है ? गांधी का ईश्वर निर्गुण है या सगुण ? क्योंकि कुछ के अनुसार गांधी निगुणवादी-अभेदवादी हैं तो कुछ के अनुसार सगुणवादी-भेदवादी। एक विद्वान् ने गांधी को अद्वैतवादी सिद्ध किया है। महात्मागांधी के अद्वैतवादी होने में सन्देह नहीं है। गांधी के लिए मात्र ईश्वर सत्य है। केवल उसकी सत्ता है। उससे अन्य सभी माया है। हम सभी उस सत्य के स्फुलिंग हैं। स्फुलिंगों का योग अनिर्वचनीय है।४
गांधी ने ईश्वर को 'सत्यस्य सत्यम' रूप में देखा। यहीं पर एक बात उल्लेखनीय है। यह धारणा नितान्त भ्रमपूर्ण है जो ईश्वर को निगुण एवं सगुण १. वही, अक्टूबर १४, १९२८ पृ. ३४ २. यंग इण्डिया, अक्टूबर १४, १९२८ ३. फिशर आन गाँधी, पृ० १०८ ४. पी. टी. राजू, आइडियलिस्टिक थाट आफ इण्डिया, पृ. सं. १९२५ पृ. २६७
परिसवाद
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