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गांधी दर्शन-सिद्धान्त और व्यवहार
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व्यावहारिक कहने का तात्पर्य यह है कि उसके सिद्धान्त भारतीय अन्य दर्शनों के ब्रह्म विचार, आत्म विचार, ईश्वर विचार, तत्त्व विचार जैसे विशुद्ध दार्शनिक विषयों पर आधारित न होकर मानव जीवन और मानव समाज के परिवेश के विषयों जैसे-सामाजिक व्यवस्था, सामाजिक स्थिति, आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक, शैक्षणिक समस्या आदि पर आधारित है। जिनका व्यावहारिक जीवन में बहुत अधिक महत्त्व है या जो सब सम्मिलित रूप से व्यावहारिक जीवन की संज्ञा से अभिहित होते हैं। किंतु इसका यह तात्पर्य नहीं है कि गांधीदर्शन के सभी सिद्धात वास्तविक जीवन में चरितार्थ होने योग्य है। क्योंकि इनकी चरितार्थता में अनेक बाधायें हैं जिन्हें दूर करने का उपाय गांधी दर्शन में परिलक्षित नहीं होता। प्रथम बाधा मनोवैज्ञानिक स्थिति है अर्थात् सभी में पूर्ण त्याग, निःस्वार्थ भाव, व्यापक प्रेम-भाव, क्रोध त्याग आदि को प्रतिष्ठित करने की आकांक्षा एक उच्च आदर्श हो सकता है; किन्तु मानव के स्वभाव के विपरीत होने के कारण व्यवहार या यथार्थ नहीं हो सकता।
दूसरी वाधा साधन या प्रक्रिया सम्बन्धी है। गांधी दर्शन में जिन सामाजिक आदर्शों की स्थापना हुई है। उनकी प्रतिष्ठा के लिए उस दर्शन के पास समुचित साधन नहीं है। अहिंसा का साधन, हृदय परिवर्तन, प्रेम भाव का विस्तार, विचार का आदान प्रदान आदि साधनों के प्रयोग की निरर्थकता प्रायः सभी ओर परिलक्षित हो रही है।
तीसरी बाधा आदर्श प्रतिमान ( आइडियल मोडेल ) का अभाव है। अर्थात् गांधीदर्शन के अनुयायियों' ने गांधी दर्शन के आदर्शों के आधार पर सीमित रूपों में भी कहीं ऐसे समाज का निर्माण नहीं किया है जिसे देखकर अन्य लोगों को उस प्रकार के समाज निर्माण की प्रेरणा मिल सके । इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि गांधी दर्शन व्यावहारिक विषयों का एक सैद्धान्तिक दर्शन है
परिसंवाद
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