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बौद्ध विनय की दृष्टि में भिक्षु भिक्षा को एक तरह के ऋण के रूप में ग्रहण करे, ऐसा तथागत ने कहा है।
और उन्होंने इसके विपरीत भ्रष्ट भिक्षु के भिक्षा ग्रहण करने को अंगार को खाने जैसा बतलाया है । तथागत की देशना के अनुसार यदि एक शीलवान् भिक्षु भी भिक्षा ग्रहण कर प्रत्युपकार के रूप में उपदेश आदि नहीं देता तो वह उस सामाजिक ऋण से उऋण नहीं हो सकता।
संघविधान के अनुसार व्यक्ति और समाज की कुछ अन्य बातें हैं। संघ विनय के नियम नहीं बना सकता है; न वह विनय के नियमों में परिवर्तन कर सकता है। संघ अपने समुदाय के भीतर कुछ छोटी-मोटी व्यवस्थाएँ कर सकता है, परन्तु वह भी अपनी सीमा के भीतर । अन्य सीमाओं में बँधे संघ पर उसकी व्यवस्थाएँ प्रयुक्त न होंगी।
एक भिक्षु का भी मत न प्राप्त होने पर सम्पूर्ण भिक्षु कर्म चाहे जितना भी बहुमत हो, सम्पन्न नहीं हो सकते। दूसरी ओर संघ के बिना कोई व्यक्ति उपसम्पन्न नहीं हो सकता। वर्षावासप्रवारणा, उपोसथ आदि विधान तथा संघशेष जैसे दोष से विमुक्ति पाने के लिए संघ के समक्ष प्रायश्चित करना आदि ऐसी बातें हैं, जिसके लिए भिक्षु सर्वथा सब पर आश्रित रहता है। इसी तरह संघ की द्रव्य-सम्पत्ति पर भी किसी व्यक्ति का अधिकार नहीं होता, बुद्ध, धर्म तथा चैत्य (स्तूप) के प्रति अर्पित धन संघ के लिए प्रयोग में लिया जा सकता है, परन्तु संघ के लिए अर्पित धन का प्रयोग चैत्यादि के लिए नहीं हो सकता। यह भी विचार का विषय है।
विनय के अनेक नियम और उपनियम ऐसे हैं, जिनके विश्लेषण से साधारण रूप से इसका निर्णय कर पाना बड़ा कठिन है कि संघ की व्यवस्था में व्यक्ति प्रधान है अथवा संघ प्रधान है। वहाँ प्रत्येक विशेष कर्म के लिए विशेष नियम एवं विशेष की प्रधानता को योजना है, जिससे हर स्तर पर एक सन्तुलन है, एक पारस्परिक नियन्त्रण की डोरी है। स्त्रियों को पुरुषों के समान उपसम्पन्न होने का और भिक्षुणीसंघ स्थापित करने का अधिकार दिया गया है। जिससे यह कहा जा सकता है कि लिङ्गभेद के बिना विनय के नियमों में समता है। परन्तु अनेक कार्यों में भिक्षुणीसंघ भिक्षु-संघ पर निर्भर है। इसमें असमानता जैसी प्रतीति हो सकती है। संघ में जाति, भाषा तथा पद के विभेद मिटाकर ही एक समता स्थापित की गयी है। फिर भी उपसम्पदा के शिक्षापदों में वरिष्ठ क्रम से अनेक भेद परिलक्षित हो सकते हैं।
जहाँ प्रातिमोक्ष-शील प्रधान रूप से प्रतिमोक्ष है और व्यक्तिमोक्ष का आधार है, वहीं व्यक्ति अपनी ओर से शील का पालन करके ही स्वयं मुक्त हो सकता है, संघ
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