________________
२५८
भारतीय चिन्तन को परम्परा में नवीन सम्भावनाएं यह सब देखते हुए स्त्री के साथ वेदाधिकारकृत वैषम्य भाव का तनिक भी औचित्य नहीं। शास्त्रों में ब्राह्मण क्षत्रिय का महत्व
समाज में शूद्र के ठीक विपरीत ब्राह्मण और क्षत्रिय की दशा थी शूद्र यदि पशु माना जाता था तो ब्राह्मण देवताओं का भी देवता माना जाता था
ब्राह्मणः सम्भवेनैव देवानामपि दैवतम्।
प्रमाणं चैव लोकस्य ब्रह्मात्रैव हि कारणम् ॥' अतः दस वर्ष का ब्राह्मण किशोर सौ वर्ष के वृद्ध राजा से भी इतना बड़ा बतलाया गया है कि उनमें पिता-पुत्र का सम्बन्ध बन जाता है
ब्राह्मणं दशवर्ष तु शतवर्ष तु भूमिपम् ।
पिता-पुत्रौ विजानीयाद्, ब्राह्मणस् तु तयोः पिता ॥२ यहाँ तक कह दिया गया है कि ब्राह्मण जन्म लेते ही वसुधा की सम्पूर्ण सम्पत्ति का स्वामी हो जाता है और कि अन्य लोग जो सम्पत्ति का भोग करते हैं वह ब्राह्मण की कृपा का फल है
ब्राह्मणो जायमानो हि पृथिव्यामधिजायते। ईश्वरः सर्वभूतानां धर्मकोशस्य गुप्तये ॥ सर्वं स्वं ब्राह्मणस्येदं यत्किञ्चिज् जगतीगतम् । श्रेष्ठ्येनाभिजनेनेदं सर्व वै ब्राह्मणोऽर्हति ॥ स्वमेव ब्राह्मणो भुङ्क्ते, स्वं वस्ते, स्वं ददाति च ।
आनृशंस्याद् ब्राह्मणस्य भुञ्जते होतरे जनाः॥ क्षत्रिय भी देवताओं के अंश से समुत्पन्न, देवताओं का प्रभाव परखने वाला, नर-रूपी महान् देवता बतलाया गया है
इन्द्रानिलयमर्काणामग्नेश् च वरुणस्य च । चन्द्रवित्तेशयोश् चैव मात्रा निर्हत्य शाश्वती ॥ यस्मादेषां सुरेन्द्राणां मात्राभ्यो निर्मितो नृपः । तस्मादभिभवत्येष सर्वभूतानि तेजसा ॥ सोऽग्निर् भवति, वायुश् च, सोऽर्कः, सोमः स धर्मराट् । स कुबेरः, स वरुणः, स महेन्द्रः प्रभावतः ॥
१. मनु० ११३८५।
२. तत्रैव २।१३५ ।
३. तत्रैव १।९९-१०१ ।
परिसंवाद-२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org