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भारतीय धर्म-दर्शन का स्वर सामाजिक समता अथवा विषमता ?
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किन्तु प्राचीन काल में ऐसा नहीं था, स्त्री को वेदाध्ययन का अधिकार था और उसका यज्ञोपवीत भी होता था
पुराकल्पेषु नारीणां मौजीबन्धनमिष्यते।
अध्यापनं च वेदानां, सावित्रीवचनं तथा ॥' स्कन्दपुराण की अङ्गभूत सत-संहिता में कण्ठतः स्वीकार किया गया है कि वेदाभ्यास का अधिकार द्विज-स्त्रियों को भी है
द्विजस्त्रीणामपि श्रौतज्ञानाभ्यासेऽधिकारिता। कहीं-कहीं 'यज्ञोपवीतिनी' कन्या का भी विधान देखने में आता है, और यह भी आता है कि पति के न होने पर स्मार्त-होम स्त्री ही करे । हारीत-स्मृति में दो प्रकार की स्त्रियाँ मानी गयी हैं-ब्रह्मवादिनी और सद्योवधू । इनमें से ब्रह्मवादिनी को उपनयन, अग्नीन्धन और अपने घर में भिक्षाचर्या का अधिकार है, जब कि सद्योबध का उपनयन नहीं होता-'द्विविधा हि स्त्रियः ब्रह्मवादिन्यः सद्योवध्वश् च । तत्र ब्रह्मवादिनीनामुपनयनं, अग्नीन्धनं स्वगृहे भिक्षाचर्य च। सद्योवधूनामुपनयनमकृत्वा विवाहः कार्यः।'५
इसके अतिरिक्त मीमांसा-सूत्र में स्त्रियों का वेदाधिकार स्वीकार किया गया है। तदन्तर्गत एक सूत्र है-'जाति तु वादरायणोऽविशेषात्; तस्मात् स्त्र्यपि प्रतीयेत जात्यर्थस्याविशिष्टत्वात्'। इस पर शबर का भाष्य है-'तस्माच् छब्देनोभावपि स्त्रीसावधिकृताविति गम्यते । अर्थात् वेद में स्त्री और पुरुष दोनों का अधिकार है। उसी प्रकार एक अन्य सिद्धान्त-सूत्र में वैदिक कर्म में दम्पती का सहाधिकार माना गया है-'स्ववतोस् तु वचनादैककयं स्यात् ।"
आश्चर्य है कि स्त्री के वेदाधिकार का प्रश्न परवर्ती शास्त्रों में जटिल बना दिया गया है, जबकि वेद की रचना में स्त्रियों का भी हाथ रहा है । आत्रेयी, विश्ववारा, आत्रेयी (कोई अन्य आत्रेयी), भवाला, घोषा, काक्षीवती जैसी स्त्रियों के रचित अथवा दृष्ट कई सूक्त ऋग्वेद में विद्यमान हैं।
१. यम-स्मृति; मनु-परिशिष्ट, पृ० १४ (पुराकल्पे कुमारीणां)। २. सूतसंहिता, शिवमाहात्म्य-खण्ड ७।२०। ३. गोभिल-गृह्यसूत्र, प्रपाठक १, खण्ड १। ४. आश्वलायन-गृह्यसूत्र ११६ ।
५. हारीत-स्मृति । ६. मीमांसा-सूत्र ६।१।३।८। ७. मीमांसा (शबर)-भाष्य ६।१।३।८, पृ० १३५९ । ८. मीमांसा-सूत्र ६।१।४।१७ ।
परिसंवाद-२
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