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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएँ
निष्कर्ष निकाल सकते हैं, जिन्होंने आध्यात्मिकता के समानान्तर व्यवहार एवं समाज को भी प्रभावित किया। इस प्रसंग में सुप्रसिद्ध पंच ज्ञानियों का नाम लिया जाता है ।
कृष्णो योगी, शुकस्त्यागी, भूपौ जनक - राघवौ । वसिष्ठः कर्मकर्ता च पञ्चैते ज्ञानिनः स्मृताः ॥
इसके अतिरिक्त महावीर, बुद्ध, शङ्कराचार्य और रामानुजाचार्य जैसे महापुरुषों में ज्ञान और चरित्र के बीच जो अविरोध एवं समन्वय था, उसका विश्लेषण महत्त्वपूर्ण होगा | भगवान् बुद्ध और बौद्धों का सम्पूर्ण इतिहास इस प्रकार के अध्ययन में हमारे दिशा-निर्देशक हैं । भोग और मोक्ष, ज्ञान एवं प्रयोग के बीच सम्बन्ध क्या हो ? इस पर विभिन्न शास्त्रों में गहन विचार किया गया है, उन्हें नवीन सन्दर्भ में पुनः स्थापित करना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है । इनके बीच तमः प्रकाशवत् विरोध, सत्यानृत का मिथुनीकरण, न तयोरन्तरं किञ्चित् सुसूक्ष्ममपि दृश्यते, भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव, सर्वमिदं विभोः शरीरम् इत्यादि जैसे प्राचीन निष्कर्ष आज के आधुनिक सामाजिक समस्याओं के चिन्तन के लिये मार्ग का निर्देश करते हैं ।
हमें इसका भी विचार करना होगा कि परम्परागत चिन्तन में आध्यात्मिक समता जब सर्वग्राही है, तो उसकी अक्षुण्णता के लिये समाज की किन विषमताओं का दूरीकरण नितान्त अपेक्षित है। इस दिशा में इसका व्यापक आकलन करना निर्णायक होगा कि विषमताओं में कितनी कृत्रिम एवं लोगों के निहित स्वार्थों के कारण समाज पर आरोपित हैं, और कितनी स्वाभाविक । कहना नहीं है कि कृत्रिम विषमताओं का धार्मिक एवं नैतिक स्तर पर अवमूल्यन होना चाहिये । इसके पूर्व कि विषमताओं के निराकरण की बात की जाय इसे निश्चित करना होगा कि आज विषमता का प्रधान केन्द्र विन्दु कौन है ? और उसके पोषण में परम्परागत, नीति, धर्म और दर्शन कितने अनुकूल एवं प्रतिकूल हैं । प्रतिकूल का निराकरण सामाजिक दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण एवं व्यापक समस्या है । उनके समाधान के लिये कैसे उपाय प्रयुक्त होंगे, इसके निर्णय पर समाज का सम्पूर्ण भविष्य निर्भर रहेगा । विश्व के इतिहास में और आज भी इस दिशा में अनेकविध आधुनिक प्रयोग किये जा रहे हैं, उनमें से अपने अनुकूल का वरण करना होगा । किसी भी स्थिति में हमें प्रयोग के लिये दो तत्त्वों की ओर ध्यान देना होगा - एक करुणा और दूसरी अहिंसा । आज के सन्दर्भ में भी इन दोनों के अपरिमित विकास की सम्भावनायें हैं । इसके लिये इनकी शक्तियों का आधुनिक दृष्टि से विश्लेषण करना आवश्यक होगा ।
परिसंवाद - २
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