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( ट ) अनुभव किया गया कि विभिन्न रूपों में सभी भारतीय दर्शनों ने इस प्रश्न पर भी विचार किया है। इसके लिए आवश्यक है व्यक्ति, समाज और राज्य के आधुनिक समस्याओं के सन्दर्भ में उस पर विचार करना और उस दिशा में नवीन वर्गीकरण और स्पष्टीकरण को प्रस्तुत करना !
. व्यष्टि-समष्टि के सम्बन्ध या सामाजिक समता के सम्बन्ध में जो विचार प्रस्तुत किये गये हैं, उसकी पृष्ठभूमि में दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ विद्वानों में आदि से अन्त तक काम करती रहती हैं। एक यह कि भारतीय दर्शनों को आधुनिक सन्दर्भ के अनुसार अपने को ढालना चाहिए, जिसका फलित यह था कि भारतीय दर्शनों में एक महत्त्वपूर्ण कमी है, जिसकी पूर्ति पाश्चात्य विचारों से कर लेनी होगी। दूसरी प्रवृत्ति यह उभर कर आयी कि इस प्रसंग में चिन्तन को दो धाराओं को जोड़ने का प्रश्न नहीं है, प्रत्युत भारतीय चिन्तन धारा में ही आधुनिक समस्याओं के समाधान की खोज होनी चाहिए। इस प्रक्रिया में स्वाभाविक एवं श्रेष्ठ समाधान की ऐसी सम्भावनायें निहित हैं जो पाश्चात्य देशों में उभरी समस्याओं के श्रेष्ठ विकल्प या समाधान को प्रस्तुत कर सके ।
___ इन गोष्ठियों की सफलता का श्रेय संयोजक श्री रामशंकर त्रिपाठी और श्री राधेश्याम धर द्विवेदी को है जिन्होंने ऐसे विषयों को विचार का केन्द्र-विन्दु बनाया, जो जीवन्त समस्याओं से परिपूर्ण है, और जिसपर अभी भी भारतीय दार्शनिकों का चिन्तन मुखर नहीं हो रहा है। इसका महत्त्व इसलिए और भी अधिक बढ़ जाता है कि ऐसी गोष्ठियों का आयोजन संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में किया जा रहा है जहाँ अभी भी परम्परागत भारतीय शास्त्रों के अध्ययनाध्यापन की अक्षुण्ण परम्परा चल रही है और आज भी प्रायः सभी प्रमुख भारतीय चिन्तन की धाराओं के प्रामाणिक विद्वान उपलब्ध हैं। श्री त्रिपाठी जी बौद्धविद्या के प्रामाणिक विद्वान हैं और श्री राधेश्याम जी आधुनिक दर्शनों से भी परिचित हैं। जीवन और दर्शन की ज्वलन्त समस्याओं से ये परिचित हैं और परम्परागत अध्ययनाध्यापन के साथसाथ नवीन समाधान की दिशा में जिज्ञासु हैं और सचेष्ट हैं। विद्या के विकास को दिशा में इनसे आशा की जा सकती है।
प्रो० जगन्नाथ उपाध्याय डीन, श्रमण विद्या संकाय सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय
वाराणसी
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