________________
१८४
भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
ईश्वर की कृपा के याचक नहीं, कर्म के अटल नियम के पोषक हैं। उनकी यह नास्तिकता आस्तिकता से बढ़कर है। इसमें मानव हृदय के प्रति अपार आशा है, मानव उत्कर्ष के प्रति अनन्त विश्वास है, पूरुषार्थ को परमार्थ से भी वड़ा दिखा देने की क्षमता है। आज के शक्तिभय से भयभीत, हिंसा से प्रताड़ित, शोषण से पीड़ित, विलास से विक्षिप्त, विषमता से विषाक्त विश्व को यदि उबारना है, यदि सृष्टि को संहार से बचाना है तो हमारे लिए भगवान बुद्ध को अपना चारित्रनायक, पथप्रदर्शक और मार्ग रक्षक बनाने के अलावा कोई मार्ग नहीं। पर ध्यान में रखना है कि मनुष्यता की हर समस्या का समाधान केवल व्यक्ति के माध्यम से ही हो सकता है। यही उनके जीवन का अमर सन्देश भी है।
परिसंवाद-१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org