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भारतीय बौद्ध कला में व्यक्ति एवं समाज से सम्बन्धित दृष्टिकोण ।। अङ्कन के सन्दर्भ में विशाल बुद्ध मूर्ति के साथ सामान्य मानव एवं समाज का अङ्कन लघु रूप में किया जाता था। सारनाथ की बुद्ध की पञ्चवर्गीय शिल्पों के साथ धर्मचक्रप्रवर्तन मुद्रा में अङ्कन तथा अजन्ता के चित्रों में विशाल बुद्ध के सामने राहुल के अङ्कन के ये दो उदाहरण पर्याप्त होंगे । गुप्तकालीन कला में समष्टि का अंकन छोड़ नहीं दिया गया था और जातकों एवं धार्मिक कथाओं के अङ्कनों में तो जैसे समष्टि की महत्ता को स्वीकार करने का दृष्टिकोण ही प्रस्तुत करना उनका ध्येय हो।
___मध्यकाल में बौद्ध धर्म एवं दर्शन अनेक भेदों-उपभेदों में बँट गया । बौद्ध देवीदेताओं की बाढ़ कुछ ऐसी हुई कि कलाकार उन अन्यान्य देवो स्वरूपों की अभिव्यक्ति में ही सराबोर रहे । बौद्ध-धर्म एवं दर्शन जैसे समाज से क्रमशः दूर होता चला गया। कलाकृतियों में सामाजिक परिवेश द्रष्टव्य नहीं होता।
समाज एवं व्यक्ति तथा उनके सम्बन्धों के बारे में यद्यपि यत्किञ्चित् संकेत ही हमें बौद्ध कला माध्यमों से प्राप्त होते हैं, किन्तु ऐसे अध्ययन के लिए यह एक समृद्ध स्रोत है जिसका आलोडन यदि धैर्यपूर्वक विशदता के साथ किया जाए तो निश्चित ही अत्यन्त रोचक परिणाम प्राप्त होंगे, ऐसी आशा की जा सकती।
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