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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएँ
बौद्ध कला का सभारम्भ मौर्य काल में अशोक द्वारा हुआ । अशोक द्वारा स्थापित धर्म स्तम्भों एवं स्तूपों एवं अभिलेखों के माध्यम से उसी परम्परा का अनुगमन किया गया जान पड़ता है कि व्यक्ति के उन्नयन एवं उसके द्वारा समाज का परिष्कार किया जाना चाहिए। अशोक अपनी व्यक्ति परकता का ध्यान रखे था और लोकोपकारी कार्यों के माध्यम से समाज से जुड़े रहने का प्रयत्न किया । उसका साधन भी व्यक्तिपरक था । यह साधन प्रतीकात्मक बुद्ध थे । अशोक के स्तूप या स्तम्भ उनके ही प्रतीक हैं । सारनाथ के अशोक स्तम्भ शीर्ष में तो यह भाव बड़ा ही स्पष्ट है । यह अङ्कन धर्मचक्रप्रवर्तन का प्रतीकत्मक अङ्कन है । बुद्ध की धर्म गर्जना चारों दिशाओं में गूंजी, वह लोक लोकान्तर तक पहुँची । अशोक की कला में अशोक की व्यक्ति सत्ता बुद्ध प्रतीक के माध्यम से प्रकट हुई है । और समष्टि सर्वदा सांकेतिक रही है । संक्षेप यदि हम यह कहें कि इस समय बौद्ध दृष्टिकोण व्यक्ति परक विशेष था तो अन्यथा न होगा | किन्तु यह अशोक का ही प्रयत्न था कि यह व्यक्तिवादी दृष्टिकोंण लोकपरक अथवा समाजपरक हो गया ।
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शुंगकालीन बौद्ध कला एकव्यक्ति समर्थित नहीं थी । वह लोक मानस का परिणाम थी। समाज का व्यक्तित्व बड़े स्पष्ट रूप में भरहुत, बोधगया, सांची, अमरावती, नागार्जुनीकोंडा एवं अन्य कई स्थानों की कला में देखने को मिलता है । शुंगकाल में मौर्यकालीन बौद्ध दृष्टिकोण में स्पष्ट परिवर्तन दिखलाई देता है । व्यक्ति परकता क्रमशः समाज परकता में समाती चली गयी । बुद्ध के प्रतीक तो कला के प्राण के रूप में थे किन्तु वे लोक सम्मानित एवं लोक संपुंजित थे । स्पष्ट ही इन कला चितेरों के लिए ऐसा बौद्ध दृष्टिकोण कारगर स्थिति में था, जहाँ व्यक्ति मात्र का महत्त्व कम उसके द्वारा निर्मित समाज का महत्त्व कहीं अधिक था । यही कारण है कि शुंगयुगीन स्तूपों की अलंकृतियों में बौद्ध जातकों, मांगलिक कथाओं, धर्मपरक सामाजिक घटनाओं तथा लोकमंगल एवं ऐश्वर्य सम्बन्धी अङ्कनों की वृद्धि हो जाती है ।
कुषाण एवं गुप्तकालीन कला में बौद्ध दृष्टिकोण पुनः परिमार्जित होता हुआ दिखलाई पड़ता है | बुद्ध मूर्ति का उद्भव महायान सम्प्रदाय को ऐसी देन थी जिसका प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता था । बुद्ध की विशाल मूर्तियों का निर्माण हुआ । बुद्ध मूर्तियों में आरम्भ में उन्हें व्यक्ति बोधिसत्त्व के रूप में अङ्कित किया गया और परवर्तीकाल में बुद्ध स्वरूप में । बुद्ध की महानता का अङ्कन करने में कलाङ्कन के लिए प्राप्त फलक का अत्यधिक भाग बुद्ध की मूर्ति के लिये दिया जाने लगा । घटनाओं के
परिसंवाद - २
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