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बौद्ध दृष्टि से व्यक्ति का विकास
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तथा आयु के क्षण भी नष्ट होते जा रहे हैं । जिस प्रकार उद्यान के फूलों का सदुपयोग कर सुन्दर मालाएँ बनायी जा सकती हैं, उसी प्रकार जीवन के क्षणों का सदुपयोग कर कुशल कर्म किये जा सकते हैं। जिस प्रकार यदि उपवन के फूलों का सदुपयोग न हो तो वे भी जीर्ण-शीर्ण हो गिर जायेंगे, उसी प्रकार यदि जीवन के क्षणों का उपयोग न हो तो वे भी व्यर्थ में नष्ट हो जाएगें (ध० प० २२१)। इसलिए हमें इस जीवन में भौतिक लाभ के साथ आध्यात्मिक लाभों का भी संतुलन रखना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य यहाँ भी सुखी रह सकता है तथा अन्यत्र भी सुखी हो सकता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि भौतिक लाभों का संग्रह करें, पर वह धर्ममय भावना से पुनः मनुष्य जिस धन का संग्रह करता है, उसे चार भागों में विभक्त कर दो भाग को भोजन में, दो भाग को अन्य आवश्यक कार्यों में लगाए तथा शेष भाग को आपत्काल के लिए सुरक्षित रखे। इस प्रकार की बचत योजना को यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में काम लाये तो देश में कभी भी मुद्रास्फीति की स्थिति नहीं हो सकती है। फलस्वरूप मँहगाई की समस्या भी उत्पन्न नहीं हो सकती है। लोक व्यवहार में सर्वदा तत्पर एवं अप्रमादी वन, विपत्तियों से घबड़ाये नहीं, अच्छे मित्रों का संग्रह करें, दानी, प्रियवादी, समभाव रखने वाला, उदार एवं उत्तम लक्ष्य में रत रहे। उसे यह समझना चाहिए कि लोक में जो संग्रह है, वे न माता-पिता, न पुत्र आदि के लिए है, वरन् संग्रह का उद्देश्य सत्कर्म की अभिवृद्धि पूर्वक जीवन यापन करना है। मनुष्य माता-पिता या पुत्र के कारण लोक में यशस्वी नहीं हो सकता है, वरन् धर्माचरण एवं उत्तम गुणों के कारण ही वह महान् बन सकता है एवं यश का भागी हो सकता है (दी० नि० ३, १४९) । इसलिए भगवान ने कहा है कि पुण्यकारी यहाँ भी आनन्द करता है और परलोक में भी आनन्द करता है। वह सर्वत्र आनन्द करता है (ध० प० १०)। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भगवान् बुद्ध के उपदेशों का मुख्य केन्द्र बिन्दु यह है कि इस लौकिक जीवन का सफल निर्माण भौतिक तथा आध्यात्मिक उपकरणों के आधार पर ही हो।
__ इस प्रकार बुद्ध के उपदेशों के आधार पर व्यष्टि के सर्वाङ्गीण विकास के अनन्तर एक स्वस्थ समष्टि अर्थात् समाज का उदय होता है । जो आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक आदि दृष्टि से विकसित रहता है। उस समाज की आर्थिक दशा बड़ी ही सुदृढ़ रहती है। व्यक्तिगत सम्पत्ति नहीं होती है। इसलिए आर्थिक विषमता का प्रश्न ही नहीं उठता है। साथ ही उत्पादन के साधनों पर किसी व्यक्ति
परिसंवाद-२
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