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महायानी साधक की दृष्टि से व्यक्ति, समाज तथा उनके सम्बन्ध
१२५ महायानियों की दृष्टि एवं क्षेत्र बहुत व्यापक है। साधक प्राणियों की कृपा पर पूनः पुनः विचार करते हैं। अनादिकाल से हम पर प्राणियों की बड़ी कृपा रही है। साधक दिन रात प्राणियों की सेवा में लगे रहते हैं। जब तक समस्त जीवों को सुख एवं शान्ति प्राप्त नहीं होगी, तब तक साधक अपने लिए मोक्ष की अभिलाषा भी नहीं करते । हमारे जन्म कर अरदि नहीं है। जब तक अर्हत् का पद प्राप्त नहीं होता, तब तक निश्चय ही संसार में जन्म लेना पड़ेगा। भगवान बुद्ध ने प्राणी के जन्मों का आदि नहीं बताया। अपने-अपने कर्मों से प्राणी संसार में जन्म लेते रहते हैं। इस जन्म की भी हमारी एक माँ है। इनकी कृपा पर गम्भीरता से विचारने पर हमें ज्ञात होता है कि इनकी कृपा को कैसे चुकाएँगे। महायानी शास्त्रों में इस बात पर विस्तारपूर्वक विचार किया गया है। यही कारण है कि साधक कोई कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व, सभी सत्त्व सुख एवं सुख के कारणों से युक्त हों, सभी सत्त्व दुःखरहित होकर परमसुख से युक्त हों, सभी सत्त्व सुख एवं दुःख के कारण राग, द्वेष आदि से रहित होकर उपेक्षा में विद्यमान हों, प्राणियों के हितार्थ बोधिसत्त्व ऐसा चित्तोत्पाद करते हैं। उदान वर्ग में बुद्ध ने कहा है कि रात के पहरेदार को रात बड़ी लम्बी होती है, थके हुए व्यक्ति को एक योजन भी दूर होता है, इसी भाँति सद्धर्म को नहीं जानने वाले बालजनों को संसार लम्बा लगता है। महायानी साधक के पाँच मार्ग इस प्रकार हैं
(१) सम्भार मार्ग-साधक के मन में बोधिचित्त उत्पन्न होते ही महायान के सम्भार मार्ग की प्राप्ति होती है । बुद्धत्व का मुख्य कारण पुण्य सम्भार और ज्ञान सम्भार है प्रारम्भिक मार्ग होने के कारण इसे सम्भार मार्ग कहते हैं। बोधिचित्त न होने पर महायान के सम्भार मार्ग में भी प्रवेश नहीं हो सकता है। सम्भार मार्ग की अवस्था में मुख्य रूप से शून्यता का श्रवण एवं चिन्तन किया जाता है।
(२) प्रयोग मार्ग-शून्यता की भावना करके उसका अनुभव हो जाने पर प्रयोग मार्ग की उपलब्धि होती है। शून्यता को आनुभविक रूप से प्रयोग करने के कारण यह प्रयोग मार्ग कहा गया है।
(३) दर्शन मार्ग-धर्म नैरात्म्य या शून्यता का प्रत्यक्ष ज्ञान होने पर दर्शन मार्ग तथा प्रथम बोधिसत्त्वभूमि प्रमुदिता की प्राप्ति एक ही समय में होती है। दर्शन मार्ग का ज्ञान प्राप्त करने वाले बोधिसत्त्व को आर्य भी कहा जाता है।
(४) भावना मार्ग--साक्षाद् शून्यता को जानने वाले मार्ग के द्वारा किन्हीं नौ क्लेशों के प्रशमन के लिए भावना करते समय भावना मार्ग प्राप्त हो जाता है।
परिसंवाद-२
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