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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएँ
सामाजिक बन्धनों से इतना भयभीत हो जाता है कि उसे स्वीकार करने से कतराता है | यदि किसी तरह बन्धन में पड़ भी जाता है तो सांसारिक आस्वाद चखकर भी घबड़ाता है और बार-बार वह भाग खड़ा होता है । वह राजमहल में नहीं रहना चाहता, वह जंगल चला जाता है । वह परिवार, गाँव, समाज के कष्ट को दुर करने की व्यवस्था नहीं करता, वह तो उनके कष्ट के आतंक से इतना भयभीत रहता है। कि जंगल पहुँच कर ही आश्वस्त हो पाता है । वह चाहता है कि प्रत्येक प्राणी इस दुःखी जीवन से सबक क्यों नहीं लेता और उसी में पड़ा पड़ा आनन्दित क्यों हो रहा है ? क्या यह कष्ट उसके अज्ञान के कारण तो नहीं है । यह अज्ञान क्या है ? इसे कैसे मिटाया जा सकता है ? इसका स्रोत क्या है ? आदि पर विचार करता हुआ एक आश्रम से दूसरे आश्रम में पहुँचता है और इसके समापन का रास्ता पाता है । घर से भगा हुआ बुद्ध जंगल में भी आदमी को खोजता है क्योंकि अज्ञान की समस्या उसका गला नहीं छोड़ती । वह तपस्वियों की जमात बनाता है, उसे भी छोड़ता है फिर अकेले विचरण करता है, ज्ञानी होता है, और पुनः अज्ञान के समापन की चिन्ता से अभिभूत वह समाज में दौड़ता है, पर वह ध्यान में रखता है कि अब उसका समाज वह प्राकृत समाज नहीं होगा, जहाँ वह पैदा हुआ था। अब वह तो ऐसे समाज की कल्पना करता है जहाँ व्यक्ति तब आये, जब उसका आत्मा एवं आत्मीय की दृष्टि खो जाये । वहाँ व्यक्ति आकर पुनः परिवार में न फसे, पुनः जन्म धारण न कर सके, वहाँ से सीधे विमुक्त हो जाए, क्योंकि जब व्यक्ति ने पारिवारिकता एवं सामाजिकता की कलुषित वृत्तियों का समापन करके संघ का आश्रमण किया है तो सम्भवतः उसका भी वही मन्तव्य होगा, जो बुद्ध का रहा होगा । यही बुद्ध की समग्र क्रान्ति है । यही बुद्ध का सम्यग्ज्ञान है । यहीं से वह लोक को व्यवस्थित करना चाहते थे । वह आदर्श समाज से दूषित समाज का नियमन करना चाहते थे इसी अर्थ में बुद्ध गान्धी से बड़े थे । इसीलिए राहुल जी ने कहा है
भारत के सम्पूर्ण इतिहास में यदि बुद्ध की किसी पुरुष से तुलना की जा सकती है तो वह महात्मा गांधी ही हो सकते हैं यद्यपि बुद्ध का व्यक्तित्व तब भी ऊँचा है । पर यदि और बातों में बुद्ध बहुत ऊँचे सिद्ध होंगे तो असंख्य भारतीय जनता के मुक्ति सेनानी होकर गांधी जी भी आगे बढ़े हैं । ( महामानव बुद्ध, पृ० ११)
सामाजिक हित सम्पन्न करना हर विचारक का उद्देश्य होता है और इसलिए वह चिन्तन तथा मनन प्रारम्भ करता है । भारत में बहुत प्राचीनकाल से विरोधी विचार तथा विचारक पैदा होते रहे हैं, पर यहाँ विरोधी विचारकों को जलाया या समाप्त नहीं किया गया, प्रत्युत उन्हें भगवान् बनाया गया । यदि जलाया या मारा
परिसंवाद - २
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