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________________ बौद्धदर्शन की दृष्टि से व्यक्ति, समाज और उनका सम्बन्ध श्री हरिशंकर सिंह दर्शन की एक शाखा, समाज दर्शन अपने समीक्षात्मक और समन्वयात्मक पहलुओं के द्वारा समाज के विषय में नियामक अनुशासन की विवेचना करता है तथा सामाजिक तथ्यों और मूल्यों में समन्वय करता है। मानवजीवन के ज्वलन्त पहलुओं का अपने में अन्तर्भाव करने से इसकी प्रधान समस्या है समाज के दार्शनिक आधारों का पता लगाना और समाज विज्ञानों के निष्कर्षों का मानवजीवन के परममूल्यों के प्रकाश में मूल्यांकन करना । हमारे समसामयिक युग में सांस्कृतिक संकट के आसार दृष्टिगोचर हो रहे हैं । इसके मूल कारकों के रूप में यन्त्रवाद, भौतिकवाद, साम्राज्यवाद, प्रजातिवाद, वर्गसंघर्ष, अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष, सामाजिकविघटन आदि प्रमुख हैं, साथ ही इसमें विज्ञान के प्रभाव का भी कम अंशदान, आज के समाजदार्शनिकों के अनुसार नहीं है । विज्ञान द्वारा शक्ति प्राप्त कर लेने पर भी मानव का चरित्र विकसित नहीं हुआ है, फलतः नये-नये प्रकार के शोषण और भ्रष्टाचार बढ़े हैं । मानव वैज्ञानिक विकास से अपने अस्तित्व के समाप्त हो जाने की आशंका से आज त्रस्त है। अतः समसामयिक विचारक मानवसमाज के मार्गदर्शन हेतु व्यग्र हैं। क्या इस दिशा में हम बुद्धदर्शन की ओर आशाभरी निगाह से देख सकते हैं ? हमें यह मानकर चलना होगा कि पाश्चात्य देशों में समाजदर्शन का किस तरह का विवेचन हुआ है और समसामयिक काल में जिस विकसित रूप में हो रहा है, उस ढंग की बात बौद्धदर्शन में नहीं ढूंढनी चाहिए, क्योंकि एक तो भारतीय दर्शनों की आत्मा भिन्न प्रकार की है और दूसरे बौद्धदर्शन का ( अन्य भी भारतीय दर्शनों का ) परम मूल्य के विषय में आग्रह भेद है । फिर भी उन समस्याओं की विवेचना जिन्हें समाजदर्शन पश्चात्य जगत में आजकल कर रहा है बौद्ध वाङ्मय में भी उपलब्ध है । यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि व्यक्ति और समाज की जब हम आज बात करते हैं तो हम यह मानकर चल रहे हैं कि उनके अस्तित्व के होने को हम इनकार नहीं कर रहे हैं (चाहे यह स्वीकृति, दर्शन में, जिस नाम से कही जाय ) और आगे भी उनके बने रहने की परिकल्पना कर रहे हैं । 1 परिसंवाद - २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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