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विमलकीर्तिनिर्देशसूत्र के अनुसार व्यष्टि एवं समष्टि का सम्बन्ध
प्रो० लालमणि जोशी
१ - विमलकीतिनिर्देशसूत्र का परिचय
विमलकीर्तिनिर्देशसूत्र बौद्ध साहित्य का एक अनमोल रत्न है । यह एक महायानसूत्र है जो मूलरूप में बौद्ध संस्कृत भाषा में सम्भवतः प्रथम शती ईस्वी पूर्व में रचा गया था । दुर्भाग्यवश सहस्रों अन्य ग्रन्थों की भाँति यह सूत्र भी अब अपने मूल रूप में उपलब्ध नहीं है । प्रथम शती ईस्वी पूर्व से लगभग दसवीं शती ईस्वी तक यह सूत्र भारत में अत्यन्त प्रामाणिक एवं लोकप्रिय था । आचार्य नागार्जुन द्वारा रचित सूत्रसमुच्चय ( दो कुन् = ले तुय = पा ) में विमलकीर्तिनिर्देश को उद्धृत किया गया है । यद्यपि सूत्रसमुच्चय भी अब मूल बौद्ध संस्कृत में अप्राप्य है । तथापि इस ग्रन्थ के भोटीय एवं चीनी अनुवादों से हमें ज्ञात होता है कि विमलकीर्तिनिर्देश आचार्य नागार्जुन के समय में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका था । मैं आशा करता हूँ कि अगले दो-तीन वर्षों के भीतर चीनी तथा भोटीय सामग्री के आधार पर सूत्रसमुच्चय IT अंग्रेजी तथा हिन्दी अनुवाद भारत में प्रकाशित हो जायगा ।
विमलकीर्तिनिर्देशसूत्र के मूल संस्करण के नौ उद्धरण आचार्य शान्तिदेव के शिक्षासमुच्चय में, और एक उद्धरण आचार्य चन्द्रकीर्ति की प्रसन्नपदामध्यमवृत्ति में पहले से सुविदित हैं । हाल ही में कुछ अन्य बौद्ध संस्कृत शास्त्रों में इस सूत्र के उद्धरणों का पता चला है । रत्नगोत्रविभागमहायानोत्तरतन्त्रशास्त्र में, प्रथम तथा तृतीय भावनाक्रमों में तथा अद्वयवज्रसंग्रह में विमलकीर्तिनिर्देशसूत्र के उद्धरणों की सूचनाएँ हमने अन्यत्र एकत्रित की हैं।
विमलकीर्तिनिर्देशसूत्र को सात बार चीनी भाषा में अनूदित किया गया था । तीन भिन्न-भिन्न चीनी अनुवाद अभी तक सुरक्षित हैं । इस सूत्र का एक भोटीय अनुवाद कन्जूर के सभी संस्करणों में सुलभ हैं। एक अन्य भोटीय अनुवाद के खण्डांश दुन्-हुआंग से कुछ वर्ष पूर्व प्राप्त हुए थे । सोग्दियन तथा खोतानी भाषानुवादों
के
कुछ खण्डांश भी मध्य एशिया से प्राप्त हुए हैं । जापानी भाषा में इस सूत्र के अनेक अनुवाद प्रचलित हैं । कुछ आधुनिक पश्चिमी भाषाओं में भी विमलकीर्तिनिर्देश
परिसंवाद -२
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