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Vaishali Institute Research Bulletin No. 8
थी, व्रतपारण के आशय से वहाँ आये । कंस की पत्नी जीवयश, जो मदिरा के प्रभाव में थी, उनके साथ नृत्य करने लगी। तत्क्षण मुनि ने यह घोषणा की कि 'जिसके लिए इस उत्सव का आयोजन किया गया है, उसी का सातवाँ पुत्र तुम्हारे पति एवं पिता का वधकर्ता होगा।' कंस ने मुनि-वचन को सत्य मानकर यह निश्चय किया कि इस बात के प्रचारित होने से पूर्व ही वह वसुदेव और देवकी से उसकी भावी सन्ताने माँग लेगा। कंस द्वारा स्वयं की इच्छा प्रकट करने पर वसुदेव देवकी तत्क्षण सहमत हो गये। कालान्तर में मुनि की घोषणा का ज्ञान होने पर वसुदेव अत्यन्त दुःखी हुए। कृष्ण का जन्म कंस द्वारा पूर्ण नियन्त्रित गृह (कारावास) में हुआ। शिशु-जन्म के समय देवताओं ने कंस के प्रहरियों को निद्रा में लिप्त कर दिया, जिससे वसुदेव शिशु को सुगमता से नन्दगाँव ले जा सके । २९
लूणवसही के उदाहरण में सम्पूर्ण दृश्यावली चार आयतों में विभक्त है। वितान के मध्य में देवकी नवजात शिशु के साथ शय्या पर लेटी है। समीप ही चार स्त्री-आकृतियाँ प्रदर्शित हैं, जिनमें से दो पंखा झल रही हैं, जबकि दो आकृतियों के करों में पात्र है। शय्या के नीचे कृष्णजन्म के मांगलिक प्रसंग के अनुरूप नवनिधि के सूचक नौ पात्र भी बने हैं। दूसरे और तीसरे आयतों में चार-चार अधखुले द्वार बने हैं, प्रत्येक के मध्य में एक-एक आकृति बनी है। अधखुले द्वार इस बात के सूचक हैं कि कृष्ण का जन्म कंस के सैनिकों के नियन्त्रण में हुआ था। दोनों आयतों के चारों ओर अलंकरण की दृष्टि से गज, वृक्ष, गजलक्ष्मी और चक्रेश्वरी की आकृतियाँ बनी हैं। चक्रेश्वरी के गरुडवाहन को मानव रूप में दिखाया गया है। (मध्यकालीन श्वेताम्बर जैन मन्दिरों पर चक्रेश्वरी और लक्ष्मी का अंकन विशेष लोकप्रिय था)।
चौथे आयत (बाहरी) का दृश्य सम्भवत: कंस द्वारा कृष्ण-जन्म के लिए अपने सेवकों को सख्ती से नियन्त्रण करने के आदेश से सम्बद्ध है। इसमें पुन: चार अधखुले द्वार दिखाये गये हैं, जिनके मध्य खड़ी आकृतियों का अंकन है। पूर्व की और तीन गजों एवं चार अश्वाकृतियों के साथ दो अन्य गजाकृतियों को दरसाया गया है। दक्षिण की
ओर १२ मानवाकृतियाँ उत्कीर्ण हैं, जिनमें कुछ के हाथ बँधे हुए हैं एवं कुछ के करों में दण्ड हैं। पश्चिम की ओर दो अश्वारूढ़ एवं गजारूढ़ आकृतियाँ हैं, जिनके करों में पात्र हैं । अश्वाकृतियों के पार्श्व में एक छत्रधारी आकृति हैं । उत्तरी सिरे पर एक खड्गधारी आकृति खड़ी है। समीप ही बनी श्मश्रूयुक्त और दक्षिण कर में खड्ग लिये कंस की राजसी आकृति है, जो हाथ बाँधे सामने खड़ी आकृति को कुछ आदेश दे रही है।
पूर्व की ओर गोकुल में कृष्ण की बाललीलाओं का उत्कीर्णन है। मध्य में बनी यशोदा की गोद में कृष्ण और बलराम को बैठे दिखाया गया है। यशोदा के पार्थों में चामरधारी स्त्री-आकृतियाँ बनी हैं, जिनके समीप ही दो वृक्षों से बँधे झूले पर कृष्ण को
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